बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है,
भीड़ भाड़ में बस में अक्सर,
छक के चढ़ना याद है,
सीट मिलने की आस में,
वो डट के रहना याद है,
चाहे बैग से या पैर से,
सीट के पासअड़े रहना याद है,
रोज रोज के सफर में अक्सर,
सबसे मिलना जुलना याद है,
मिले सीट तो फिर,
अच्छे से तन के सोना याद है,
कूदे बस जो गड्ढे में फिर
नींद से जगना याद है,
अपने स्टाप का अक्सर,
नींद में छूटना याद है,
फिर दूसरी बस से अक्सर,
वापस आना याद है,
पास रहने से पास में अपने,
बस में चढ़ना उतरना याद है,
बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है।
बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है,
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
मंगलवार, 20 जून 2017
याद है
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