सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

वाकया

गेट तो हमने भी उड़ाया था,
दीवार के बारे में सोचा भी नहीं,
वो वाकया भी बड़ा गजब था,
जो रास्ते में हमे दिखाई दिया।

वो तो एक ट्रक निकला,
जो हमसे आगे बढ़ गया,
गेट और दीवार को छोड़,
घर के भीतर घुस गया।

मेहरबाँ था आज ऊपरवाला,
नुकसान केवल आर्थिक निकला,
सड़क किनारे घर होने का,
ये भी एक नुकसान निकला।

घर था वो बड़ा मजबूत वाला,
करोड़ पति के रुतबे वाला,
ढह गया दीवार आज उसका,
ये दीवार नहीं, रुतबा था उसका।

--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

चकोर

हमने चाँद पे नजरें लगा रखी थी,
की कहीं चाँद नजरों से ओझल ना होजाये,
कम्बख्त बादल आ गए कहीं से,
और हम चकोर ना हो पाए।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

गुलाब

गुल से खिलता है गुलाब,
धतूरे को कौन पूछता है,
अरे मोहब्बत का है ये बाजार,
हमे देखता कौन है।

परवानो से है पटा पड़ा,
ये सारा बाजार,
ढूंढ सको तो ढूंढ लो,
तुम अपना सच्चा प्यार,

हर रांझे को हीर मिले,
हर मजनू को लैला,
घर जाने का समय हो गया,
मैं चला बांध के थैला।

--सुमन्त शेखर।