ना देखी थी लाइन कभी इतनी लंबी,
किसी लंगर में यारों,
दिख रही है जितनी लंबी आज,
सभी बैंकों के बहार,
शामियाने लगे है ऐसे ,
बैंको के बहार,
लगता है जैसे ,
कोई बैंक पर्व हो आज,
खुल्ला नहीं है,
आज मेरे पास,
देवी लक्ष्मी नाराज है,
बहुतो से आज,
ना एटीएम से मिला पैसा,
ना बैंक में मैं जा सका,
डेबिट कार्ड है संग मेरे,
जिससे मैं राशन ला सका।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
शनिवार, 12 नवंबर 2016
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