शनिवार, 12 नवंबर 2016

नोटबंदी

ना देखी थी लाइन कभी इतनी लंबी,
किसी लंगर में यारों,
दिख रही है जितनी लंबी आज,
सभी बैंकों के बहार,
शामियाने लगे है ऐसे ,
बैंको के बहार,
लगता है जैसे ,
कोई बैंक पर्व हो आज,
खुल्ला नहीं है,
आज मेरे पास,
देवी लक्ष्मी नाराज है,
बहुतो से आज,
ना एटीएम से मिला पैसा,
ना बैंक में मैं जा सका,
डेबिट कार्ड है संग मेरे,
जिससे मैं राशन ला सका।
--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 26 सितंबर 2016

खर्चा

खर्चा खर्चा खर्चा,
चलो जेब पे कर ले चर्चा,
जब आता है पैसा,
सीना मेरा तनता,
खर्च करने को पैसा,
जी मेरा मचलता,
जब जाता है पैसा,
दिल सिकुड़ सा जाता,
हाफ पाफ करता,
पर्स भी झल्लाता,
फिर चीख चीख के कहता,
भईया कम करो अब खर्चा,
कम करो अब खर्चा।
--सुमन्त शेखर

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

ओलंपिक

जो कर ना सके सब,
वो आपने कर के दिखाया है,
नाज है पुरे देश को आप पर,
आपने मुश्किलों को आसान करके दिखाया है,

ये तो महज एक इत्तेफाक है,
कि मशीनें आपके प्रदर्शन को आंकती है,
हर खिलाडी जो दुहरा सके
किसी के बस की बात नहीं,

हाँ टूटे जरूर है कुछ दिल यहाँ,
आपको प्रदर्शन से कम अंक मिलते देख,
खामियां तो उन लोगो में है,
जिन्होंने समय से आगे का खेल देखा नहीं।

रखी है नीव आपने,
बदलते हुए कल की,
आज दीपा सिंधु साक्षी है,
कल और बेटियां अपने देश की,

आपकी श्रेष्ठता
पदक की मोहताज नहीं,
पदक आपसे है,
आप पदक से नहीं।

-- सुमन्त शेखर।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

ऐ बरसते बादलो

ऐ बरसते बादलो,
यू ना बरसो सब जगह,
बरसना ही है तो बरसो वहाँ,
इक बूंद को तरसते लोग जहा,

माना कि तूने भर दिए है,
हर गड्ढ़े हर नाली,
पर नहीं मिला है जीवों को,
पिने का साफ पानी,

मत बरस तू इतना ज्यादा,
मेरे शहर में,
नहीं यहाँ मिट्टी की जमीन,
अब कंक्रीट खाली,

ना जायेगा पानी जमीन के भीतर,
बह जायेगा संग नाली,
सड़को पर भरेगा पानी,
सबको होगी बहुत परेशानी,

ऐ बरसते बादलो,
यू ना बरसो सब जगह,
बरसना ही है तो बरसो वहाँ,
इक बूंद को तरसते लोग जहा।

--सुमन्त शेखर।

बुधवार, 27 जुलाई 2016

हड़ताल

माना के मेरे शहर में हड़ताल थी,
शहर में सारी बसें बंद पड़ी थी,
सोचते थे सड़क खाली होगी शायद,
गाड़ियों की लंबी कतार दिखी आज,

मजाल है कि गाड़ी आगे बढ़ जाये,
जैसे अंगद का पैर है, वही जम जाये,
बारिश का कहर ऊपर से और बरपा,
सड़को पर कोई तालाब जन्मा जैसा,

मेरे ऑफिस के बाहर कोई चक्रव्यूह बना,
जिससे भीतर आने का मार्ग अवरुद्ध हुआ,
दस मिनटो का सफर कई घंटों में तब्दील हुआ,
कुछ देर के लिए ही, पूरा शहर स्थिर हुआ,

बस बिन पैसेंजर बदहाल हुआ,
बस बिन सड़को पर ट्रैफिक जाम हुआ,
सड़को पर पिकनिक सा माहौल हुआ,
विशुद्ध सेल्फी और व्हट्सएप फिर दौर चला।
-- सुमन्त शेखर।

स्वप्न सलोना

कुछ दिनों पूर्व की आपबीती से प्रेरित है। जब ऑफिस का काम मुझपर हावी हो रहा था।

तबियत नासाज़ थी मेरी,
घर जा के सो गया मैं,
किस्मत ख़राब थी मेरी,
स्वप्न में फिर खो गया मैं।

काम में डूबा था इतना,
स्वप्न में भी लैपटॉप खोल गया मैं,
आउटलुक ने हैरान किया,
बग के रिपोर्टिंग ने परेशान किया,

टेक्नोलॉजी का बुलबुला था,
मेरे शरीर से वो निकलता था,
समस्याएं थी बहुत सी पर,
सारे को हल कर गया मैं,

जो भी काम था ऑफिस का
स्वप्न में ही निपटा गया मैं,
बड़ा प्रसन्न था अब चित्त मेरा,
अब ना होगा नया बखेड़ा,

स्वेद से तन गिला था,
जब मैं होश में आया था,
तब जाकर एहसास हुआ,
स्वप्न मेरा सलोना था।
--सुमन्त शेखर

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

बातें दो चार।

खफा है दोस्त मेरा,
पिछले कुछ दिनों से,
कुछ कहता नहीं अब वो हमसे,
कोई राज दफ़न है सीने में,

ये जरुरी है की मुलाकातें हो,
मुझसे और तुमसे चंद बातें हो,
मिट सकते है गीले शिकवे,
चाहे कुआँ हो या खाई हो।

खामोशियों से तेरी,
हर बात सीने में दफ़न रह जायेगा,
ना कभी वो जिक्र में होगा,
ना सुलझ पायेगा कभी।

गर खता हुई है मुझसे,
तो मुझे उसका इल्म करा दे,
खामोश रहने से तेरे,
खता माफ़ कौन करे।

मजबूर हो सकते है कल अपने हालात,
चाह कर भी न हो पाये अपनी बात,
क्यों करें हम इसका इंतेजार,
चलो मिलकर करे हम बातें दो चार।

-- सुमन्त शेखर

मैं और मेरी गाड़ी।

मेरी नयी कार,
चलती है बेमिसाल,
सब चलाएं तो है काबू में,
मुझसे है बेकाबू यार।

नया नवेला मैं वाहन चालक,
धीरे धीरे चलती कार,
दसवे दिन ही ठोकी मैंने,
मेरे ऑफिस का था द्वार।

बीमा से फिर मिली जो राशी,
कुछ और मिलाकर भुगतान किया,
वाहन चालन के स्वप्न का,
फिर समय ने कुछ तिरस्कार किया।

महीने भर मैंने फिर,
अपनी शक्ति का भंडार किया,
लिया वाहन संग मित्र था मेरे,
सड़को पर चालन का ज्ञान लिया।

अब है हुआ विस्वास मुझे,
वाहन चालन का है भान मुझे,
निःसंकोच चलाना सीख रहा हूँ,
सड़को पर सरपट दौड़ रहा हूँ।

गति को नियंत्रित करना है,
पहिये को दिशा भी देना है,
संकेत सभी को करना है,
नयी राहो से  गुजरना है।

राजमार्ग या मुख्य सड़क,
सब से रोज गुजरना है,
सब हालातो में अब तो मुझे,
मेरी गाड़ी पे काबू पाना है।

--सुमन्त शेखर

रविवार, 8 मई 2016

बरसने दे।

मिल रही है राहत आज,
सूरज की तपिश से,
जब गिर रहें है ओले,
आसमा से जमीं पे।
सुन रहा हूँ घोर गर्जना,
नभ् के आज सिने से,
चमक रही है बिजलियाँ,
कि आज इन्हें बरसने दे।
-सुमन्त शेखर

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

बारिश के बादल

बादल छाये थे बड़े घनेरे,
अब बारिश होने को थी,
मन का मयुर उतावला हो चला था,
शायद आज तन गिला होना था,
तभी बादलों का गड़ गड़ाना हुआ,
पानी की छोटी छोटी बुँदे,
आसमान से धरती की तरफ,
तीव्र वेग से आती हुई,
जब धरा से टकराई,
एक पफ की आवाज आई,
मिट्टी की एक सोंधी सी खुशबु,
मेरे मन को भाई,
फिर एकाएक ठंडी हवाए आई,
डर लगा जैसे ये बारिश न भगाए,
कुछ बूँद ही सही,
मेरे घर के छत पे आये,
फिर कुछ थमी हवाए,
गीली हुई थी अब ये फ़िज़ाएं,
ठंडक का एहसास मिला है,
बाहर सब साफ सुथरा है,
अब बस ऐसे ही बारिश हो,
जरुरत भर जितनी हो,
कुछ फूल कलियाँ अब खिल जाएँगी,
मुरझाये पोधे जागेंगे,
बस बादल तू ऐसे ही आना,
हर गली खेत को सदा भिगाना,
रहे न सुखा जग में कही,
बादल तू अच्छे से आना।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 24 मार्च 2016

।।सफ़र रेल का।।

ग्रीष्म ऋतू में सफ़र रेल का,
तड़ तड़ तड़ तड़ स्वेद तन का,
गर्म हो गया नीर रेल का,
सभी तलाशें पेय शीतल सा।

जब भी कोई स्टेशन आता,
भीड़ पेय की दुकान पे सजता,
पतलून में सब घूम रहे है,
गर्मी से सब त्रस्त है भईया।

कोई मट्ठा देखो पी रहा है,
कोई कोल्ड ड्रिंक पी के झूम रहा है,
कोई ठंडा पानी ढूंढ रहा है,
कोई गर्म मौसम को कोस रहा है।

अब शाम हुई,
गर्मी थोड़ी शांत हुई,
ठंडी अब हो गयी हवाएं,
सब लोगो ने राहत पायी।
--सुमन्त शेखर।

मंगलवार, 15 मार्च 2016

बारिश

कबसे जमी थी धुल,
आज धुल गयी,
मेरे शहर में भी आज,
बारिश हो गयी।
काले होते हुए पत्तो में भी,
आज हरियाली छा गयी,
गर्मी के सितम से थे सब परेशा,
लो अब ठंडी हो गयी,
पसीना से जो गिला हुआ था,
आज राहत मिल गयी,
कब की प्यासी थी जमी,
आज इसकी प्यास बुझ गयी।
-- सुमन्त शेखर।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

कुरुक्षेत्र

हस्तिनापुर में फिर छिड़ा है,
सँघर्ष देखो कुरुक्षेत्र का।
भाई नहीं है लड़ रहे
लड़ रही है जनता।

कोई शकुनि बना यहाँ तो,
कोई दुर्योधन बन लूट रहा,
मूक हुए है भीष्म पितामह,
अपने कर्त्तव्य की जंजीरो से।

कहा छुपे हो कलजुग के कृष्णा,
सकल संसार है ढूंढ रहा,
सब मनुजो को राह दिखा,
सत्य के दर्शन करवा।

गिने चुने दो चार नमुने,
अब बसते हर राज्य में,
दिग्भ्रमित करने के खातिर,
वो चलते रहते चाल अनेक।

भारत माँ के वीर सपूतों,
क्यों फंसते हो तुम भ्रमजाल में,
बुद्धि विवेक से परचम लहराओ,
तुम भारत की शान हो।

बुधवार, 20 जनवरी 2016

केजरी और मोदी की लड़ाई

गुस्ताखी माफ़
प्रस्तुत है
केजरी और मोदी की लड़ाई
इसे कल्पना ही समझना मेरे भाई!

केजरीवाल सोने गया,
मच्छरदानी लगाना भूल गया,
मच्छर ने काट लिया
तब केजरीवाल ने बयान दिया
"जी हमारी कोई गलती नहीं है,
ये सब मोदी जी का किया धरा है,
ना उन्होंने मुझे टेंशन दिया होता,
ना मैं मच्छरदानी लगाना भूलता।"

फिर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में,
सिसोदिया बैठे बीच में
आषुतोश उनके दाये
बिस्वास बैठे बाये,
मीडिया को सब समझाए
विपछ हमको कितना सताए
सुरक्षा हमको केंद्र से दिलवाओ
केजरीवाल की जान बचाओ।

मोदी ने केजरी को समझाया
मच्छर भगाओ अभियान था
जब भी हमने चलाया
आप ने कर्मचारियों को घर से भगाया
अब जब मच्छर को मौका मिला
तो उसने है केजरी पर दंश आजमाया
अब क्यों डरते हो आप
हम सब खड़े है आपके साथ।