रविवार, 8 फ़रवरी 2015

मेरी दिनचर्या

सुबह ​होती 
आँखे मिचे
तज बिस्तर कोजल्दी ​मैं भागूं 
आठ से पांच ​है ​समय ऑफिस का 
घडी का कांटा आठ बताता 
अक्सर यूं ही देर देर मै करता 
सारी गलती बस पे मढ़ता 
दस बजे को ऑफिस आता 
पहले तो है मीटिंग होता 
फिर चाय कॉफ़ी का दौर है चलता 
आकर के फिर रिपोर्ट बनाना 
थोड़ा बहुत कोडिंग भी करना 
सबके साथ फिर लंच में जाना 
वापस आके फिर कोडिंग करना 
फिर नींद आने पर चाय है पीना 
संग थोड़ा सा गप्पें करना 
पांच बजे को ऑफिस छोड़ना
सात बजे तक घर को आना
फिर थोड़ा सा दौड़ लगाना
घर में आकर खाना खाना
फिर फेसबुक पर चैटिंग करना
देर रात में फिर सो जाना
यही रहती दिनचर्या मेरी
हर दिन ये ना एक सा रहता
थोड़ा सा परिवर्तन रहता
करता हुँ प्रयास यही
सुबह जागूँ मैं थोड़ा जल्दी
बस करता हुँ प्रयास यही

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

इंटरनेट का अभाव

आज खुद को बेबस महसूस करता हूँ मैं 
जब भी इंटरनेट से जुदा हो जाता हूँ मैं 
कहाँ ईमेल और फेसबुक पर रहता था व्यस्त 
आज अचानक से हो गया हूँ त्रस्त 

बेकार सा पड़ा हुआ हूँ मै आज घर में 
जी नहीं लगता मेरा आज किसी काम में 
कोसता हूँ जी भर बीएसएनएल को आज मैं 
क्यों करते है देर लोग सरकारी काम में 

घर में है टीवी इंटरनेट से चलने वाला 
इंटरनेट के अभाव में बन गया ये केबल वाला 
बारबार देखता हूँ मैं लैपटॉप 
शायद चलने लगा हो इंटरनेट मेरा