सोमवार, 24 नवंबर 2014

मशरूफ़ियत

मशरूफ़ियत में अपने ​अक्सर ​भुल जाते है ​खुद को हम ​
और लोग पुछते है ​ हमसे, हमे कब याद करते हो सुमन्त !
याद तो सभी रहते है हमे बस बात नहीं ​कर पाते ​
जब भी नंबर लगाते हम फिर मशरूफ हो जाते

इन्तेजार

कर रहे 
कब से खड़े 
हम इन्तेजार 
अब बस का 
ना कोई बस ही आती है 
ना उसकी खबर 
जाने कितना लम्बा होगा 
आज इन्तेजार इस बस का

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

साक्षात्कार

साक्षात्कार 
कभी होता है मेरा 
कभी करता हूँ किसी और का 
फिर भी दोनों ही सुरतो में 
होती है एक ही ख्वाहिस 
या तो तु राजी हो जा 
या मुझको रजामंद कर ले। 

सोमवार, 17 नवंबर 2014

जीत

है ये मौका ख़ुशी का 
इतरा लो आप  
ये जीत है आपकी  
इसके हक़दार हो आप  
रखना ध्यान इस बात का 
जस्बा रहे बरक़रार इस जीत का

कौन था दूल्हा?

अपनी ही शादी में 
जब दुल्हा था गायब 
भेज दिया उसने 
कुरता बदले में अपने। 

चली जब दुल्हन लेने फेरे 
कुरता था लटका टँगने संग अपने
दूल्हा का भाई था कुरते को पकडे 
मानता था हर बात पंडित जो कह दे। 

पैदा हुआ भ्रम अब मेरे मन में 
कौन था दूल्हा इस दुल्हन का यहाँ पर 
कुरता था जिसका या जो था कुरते संग 
कोई तो यारो अब दुर करो मेरा भ्रम। 

बुधवार, 12 नवंबर 2014

सम्मान

कि मिलती नहीं ख़ुशी जिंदगी में युं आसानी से 
दो बोल भी काफी होते है लोगो को मुस्कुराने को
प्रयास रहेगा मेरा कि बिखेर दु हास्य आपके लिए 
आपकी एक मुस्कराहट ही सम्मान है मेरे लिए 

रविवार, 2 नवंबर 2014

धरती को तु हरा बना

ज्यों ज्यों पारा ऊपर चढ़ता 
हर जीव जगत का कष्ट है पाता 
पाने को निजाद तपन से 
हर कोई है पंखे झलता 

कोई बारिश की बाट जोहता 
कोई ठंडे पेय बनाता 
गर्मी के इस मौसम में यारो 
पानी भी है बहुत छकाता 

भूमिगत जल हो या 
हिम ध्रुव पटल पर 
सबका स्तर घटता जाता 
ज्यों ज्यों परा चढ़ता जाता 

नयी नयी तकनीको से हम 
पर्यावरण को दूषित करते 
जीवन के प्राचीन रूप को 
बड़ी सरलता से हम तजते 

है काल चक्र अब बदल रहा 
ऐ इन्सान अब संभल जरा 
हर रोज तु इक पेड़ लगा 
धरती को तु हरा बना 

शनिवार, 1 नवंबर 2014

इश्क़

इश्क़ वो नजराना है 
जिसमे लोग दुनिया से दो दो हाथ करते है 
पास में खाने को हो ना हो 
माशूक को छप्पन भोग खिलाते है