मंगलवार, 9 सितंबर 2014

दर दर भटक रहा हूँ

दर दर भटक रहा हूँ 
कुछ पाने की आस में 
प्यास लगी है जोरो की 
कुआँ है पास में 
बंधी है बाल्टी 
रस्सी के छोरो में 
घुमती है चकरी 
बाल्टी के डोरो में 
कोशिस की हमने भी 
अपनी तकनीको से 
की आ जाये पानी 
डोरे की बाल्टी से 
छलकती है बाल्टी 
पानी को छुने में 
भरती है पानी 
बाल्टी के पेंदे में 
खींचता हु डोरा 
अपने बाजु के जोरो से 
बाहर आता है पानी 
बाल्टी के भरने से |