बुधवार, 31 दिसंबर 2014

इन्तेजार

बड़े बेसब्र हुए जा रहे है 
हम तो तेरे इन्तेजार में 
बाट जोहते नैन हमारे 
थक गए तेरे आस में। 

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

वर्ष 2015

हो रहा ये वर्ष समापन 
आगाज नए का करना है 
कर लो अब तैयारी पुरी 
नाच गाना थोड़ी मस्ती 

झुमेगी हर झुग्गी बस्ती
शहरो में भी रहेगी मस्ती
करेंगे खुब हल्ला गुल्ला 
स्वागत वर्ष दो हजार पंद्रह 

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

नववर्ष

अब कुछ घड़ियाँ और बची है 
नए साल के आने में 
याद करो सब क्या खोया -पाया 
बीत गए ज़माने में 

कुछ अच्छा पाया 
कुछ हमने किया ख़राब 
सोचो क्या करना है अब 
भुल जाओ कल का हिसाब 

फैला दो नयनो की चादर 
करो स्वागत सहर्ष उल्लास 
मधुर रहे ये पावन नववर्ष 
समृद्ध करे यह जीवन हरपल 

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

मैरी क्रिसमस

कर रहे हम इन्तेजार यहाँ 
संता आएगा पहले जहां 
खुशियो का देगा सबको तोहफा 
बच्चो को देगा खेल खिलौना 

फिर हम संता के संग नाचेंगे 
"जिंगल बैंग" हम गाएंगे 
खुशियाँ हम लुटाएंगे 
क्रिसमस हम मनाएंगे 

आ गया है संता स्लेज पर 
मिलकर बोलो "मैरी क्रिसमस"

रविवार, 21 दिसंबर 2014

तुम

अब कुछ अर्ज भी कर दो यार 
कान तरस गए सुनने को 
कब से खामोश बैठे हो 
क्या तुम सच में गुंगे हो 

तुम्हे ना मालूम हो लेकिन 
सुरों के सरताज हो तुम 
तुम सितार के तार हो 
वीणा की मधुर तान हो तुम 

सुगम संगीत का राग हो तुम
पपीहे की आवाज हो तुम  
पानी का कलकल गीत हो तुम
एक मन्द मधुर मुस्कान हो तुम 

खुद को अब पहचानो यार 
करो दुनिया से नजरे चार 
इतना मत शरमाओ यार 
अब तो अर्ज कर ही दो यार 

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

उसने मुझे शहर जो दिखानी थी

आज जब बत्ती गुल हुई 
मै बालकनी में चला आया 
अपने शहर का नजारा बड़ा खास था 
चारो तरफ घना अँधेरा और 
बीच में गाड़ियों की रौशनी में जगमगाता सड़क था 
चमचमाती इमारतों को तो देखो 
लगता था मानो किसी ने 
हीरे जड़ दिये हो इस अँधेरे शहर में 
हर विराना गुलजार था इस अंधेर में भी 
युँ तो रोजमर्रा की जिंदगी में
बिजली जाती थी घंटे - दो घंटे के लिए
पर आज कुदरत कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी 
नहीं जान पता मै अपने शहर को करीब से इतने 
ये तो बिजली विभाग की मेहरबानी थी 
उसने मुझे शहर जो दिखानी थी 

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

क्रिसमस

लाल लाल टोपी डाले 
सादी लंबी दाढ़ी वाले 
गोल गोल पेट फुला के 
पीछे उपहारों गठरी डाले

देखो सांता अब आएगा 
फिर बच्चो को हंसाएगा 
क्रिसमस संग मनाएगा 
खुशियां देता जायेगा

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

मझधार

आज कितना चुप हुँ मै 
कुछ बोलने को मन नहीं कर रहा 
फिर आपको देखकर 
चुप रहा नहीं जाता। 

ना जाने ये कैसी 
अजीब सी उलझन है 
ना निगलने को बनता है 
ना उगला ही जाता है। 

बीच मझधार के से 
फंस गया हु मै 
कोई तो हाथ बढ़ा दो यार 
देखो कितना उलझ गया हुँ मै। 

रविवार, 14 दिसंबर 2014

आज और कल

कि जीता है हर इंसान आज में 
फिर भी सोच रहा है कल की
कितना भी कच्चा हो ​जग में
पर बिसात बिछाता है वो पक्की 

जुझता है आज से
चाहें कितना भी हो मुश्किल
चाह यही है दिल में
कि हर ख़्वाब हो जाये मुमकिन

लिए ख़्वाब इन आँखों में
हमने भी यही चाहा है
कितनी भी मुश्किल हो आज
कल का दिन हमारा है

यूँ तो कल नहीं आता है
इक मंजिल सा दे जाता है
मंजिल को पाने की जिद में
हर इंसान आज को जीता है

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

जन्मदिन

जन्मदिन मुबारक हो तुमको तुम्हारा 
पार कर ली है तुमने एक वर्ष की ये संघर्ष यात्रा 
है दुआए हम ये देते तुमको आज फिर 
लोग जाने अब तुमसे परिवार को हमेशा 

नहीं होती है राह कभी आसान जिंदगी की 
करो तुम पार हर चुनौती तक़दीर की 
ना मानो हार कभी किसी काम को करने से 
क्योंकि यही तो है कुंजी कल को जीने की 

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

क्रिसमस और नया साल

​​वही जमीन है 
वही आसमान है 
मेरे चारो ओर सबकुछ वही है 
फिर भी कुछ बदल सा गया है

चारो तरफ लोगो को देखो 
किसी उधेड़बुन में रहने लगे है 
कोई सांता बनता कोई तारे बनाता 
जैसे क्रिसमस का तयोहार हो आता 

अरे ये महीना कौन सा है
लो ये तो दिसंबर आ गया है 
तभी तो कहु ठण्ड क्यों लग रही है 
क्रिसमस और नया साल आ गया है 

रविवार, 7 दिसंबर 2014

फिर सुबह होगी

रात होती है कि अब फिर सुबह होगी 
हर रात की किस्मत यही मुकम्मल होगी​​

ये जो बीत गया दिन बेहद हसीन था 
आनेवाला दिन भी लाजवाब होगा 

बस इस रात को गुजर जाने दो
कि सुबह फिर तुम्हे गले लगा सके 

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

पड़ाव ये आखिरी

दर्दे जुदाई तो अब सहना पड़ेगा 
हमे भी इस बदलाव से गुजरना पड़ेगा 
जिंदगी के सफर में मुकाम हजारो है 
हमें हर मुकाम को पार करना पड़ेगा 

माना की इस कहानी का पड़ाव ये आखिरी
पर जान लो ये सफर की छोटी सी इक कड़ी  
अभी और भी है कड़िया कई जोड़नी 
हर जोड़ पर इसके हमे मिलती नई कहानी 

जिंदगी के सफर में मिलते है मुसाफिर अनेक 
सब देते जाते हमको अपने अनुभव बुरे भले 
हु मै शुक्रगुजार उनसब मुसाफिरों का 
जिन्होंने मुझे सिखाया फलसफा ये जिंदगी का 

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

होगी शादी आपकी भी एकदिन

सुर्ख़ लाल जोड़े में वो आएगी 
आपको गले से लगाएगी 
आपकी किस्मत का सितारा बदलेगा उस दिन 
जब वो आपके घर आएगी 

अब तक जो आप छुट्टा सांड थे 
वो आपको बकरा बनाएगी
होशियार रहना ए मेरे दोस्त 
जिंदगी तो बस एक मौका ही दे पायेगी 

चढ़ो जो घोड़ी पर 
समझ लेना उस दिन 
जिंदगी ने दिया है ये मौका आपको उस दिन 
भगा लो घोड़ी को जो ना बनना हो बकरा 

मगर किस्मत को कौन बदल सका है मेरे दोस्त 
ना भगा पाओगे आप घोड़ी को उसरोज 
बंधोगे आप मंडप में उसके जोड़े से एक दिन 
होगी शादी आपकी भी एकदिन। 

सोमवार, 1 दिसंबर 2014

मनःस्थिति

मैं मेनका
चली रिझाने 
महर्षि 
विश्वामित्र को। 

कभी मृदंग की ढाप से, 
कभी केशों की छाव से,
अपने सोलह श्रृंगार से,
नृत्य की झंकार से,

कभी वीणा के वान से,
कभी सितार के तार से, 
अपने कदमो के थापों से, 
नव यौवन की अदाओ से, 

हर सम्भव प्रयास करू मैं
नित नव अनुसन्धान करू मैं 
मान जाओ हे विश्वामित्र ,
अब तुझको प्रणाम करू मैं। 

सोमवार, 24 नवंबर 2014

मशरूफ़ियत

मशरूफ़ियत में अपने ​अक्सर ​भुल जाते है ​खुद को हम ​
और लोग पुछते है ​ हमसे, हमे कब याद करते हो सुमन्त !
याद तो सभी रहते है हमे बस बात नहीं ​कर पाते ​
जब भी नंबर लगाते हम फिर मशरूफ हो जाते

इन्तेजार

कर रहे 
कब से खड़े 
हम इन्तेजार 
अब बस का 
ना कोई बस ही आती है 
ना उसकी खबर 
जाने कितना लम्बा होगा 
आज इन्तेजार इस बस का

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

साक्षात्कार

साक्षात्कार 
कभी होता है मेरा 
कभी करता हूँ किसी और का 
फिर भी दोनों ही सुरतो में 
होती है एक ही ख्वाहिस 
या तो तु राजी हो जा 
या मुझको रजामंद कर ले। 

सोमवार, 17 नवंबर 2014

जीत

है ये मौका ख़ुशी का 
इतरा लो आप  
ये जीत है आपकी  
इसके हक़दार हो आप  
रखना ध्यान इस बात का 
जस्बा रहे बरक़रार इस जीत का

कौन था दूल्हा?

अपनी ही शादी में 
जब दुल्हा था गायब 
भेज दिया उसने 
कुरता बदले में अपने। 

चली जब दुल्हन लेने फेरे 
कुरता था लटका टँगने संग अपने
दूल्हा का भाई था कुरते को पकडे 
मानता था हर बात पंडित जो कह दे। 

पैदा हुआ भ्रम अब मेरे मन में 
कौन था दूल्हा इस दुल्हन का यहाँ पर 
कुरता था जिसका या जो था कुरते संग 
कोई तो यारो अब दुर करो मेरा भ्रम। 

बुधवार, 12 नवंबर 2014

सम्मान

कि मिलती नहीं ख़ुशी जिंदगी में युं आसानी से 
दो बोल भी काफी होते है लोगो को मुस्कुराने को
प्रयास रहेगा मेरा कि बिखेर दु हास्य आपके लिए 
आपकी एक मुस्कराहट ही सम्मान है मेरे लिए 

रविवार, 2 नवंबर 2014

धरती को तु हरा बना

ज्यों ज्यों पारा ऊपर चढ़ता 
हर जीव जगत का कष्ट है पाता 
पाने को निजाद तपन से 
हर कोई है पंखे झलता 

कोई बारिश की बाट जोहता 
कोई ठंडे पेय बनाता 
गर्मी के इस मौसम में यारो 
पानी भी है बहुत छकाता 

भूमिगत जल हो या 
हिम ध्रुव पटल पर 
सबका स्तर घटता जाता 
ज्यों ज्यों परा चढ़ता जाता 

नयी नयी तकनीको से हम 
पर्यावरण को दूषित करते 
जीवन के प्राचीन रूप को 
बड़ी सरलता से हम तजते 

है काल चक्र अब बदल रहा 
ऐ इन्सान अब संभल जरा 
हर रोज तु इक पेड़ लगा 
धरती को तु हरा बना 

शनिवार, 1 नवंबर 2014

इश्क़

इश्क़ वो नजराना है 
जिसमे लोग दुनिया से दो दो हाथ करते है 
पास में खाने को हो ना हो 
माशूक को छप्पन भोग खिलाते है 

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

दुल्हा था गायब

अपनी ही शादी में 
दुल्हा था गायब 
ऑफिस में बैठा वो 
काम कर रहा था शायद 

ऑन साइट पर भेजा उसको 
शादी में था घर आना उसको 
मैनेजर ने उसको पकड़ा ऐसा 
क्रीटिकल डिलीवरी में फंसा बेचारा 

सोच रहे है सब अब घर पर 
कब आएगी दुल्हन घर पर 
कौन सा होगा अगला मुहूरत 
जब होगा अपना दुल्हा घर पर 

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

ख़्वाब नए नए

आँखों में पल रहे है 
अब ख़्वाब नए नए 
हर ख़्वाब को पाने के
है रास्ते नए नए। 

चल पड़ा हु मै भी अब तो 
नए रास्ते की तलाश में 
क्या पता मिलजाए मंजिल 
यही कही पास में। 

है रास्ता नया 
चुनौतियां नयी 
विविधताओं से भरा 
अनजाना रास्ता। 

हर पड़ाव में मिलेंगे 
मुसाफिर नए नए 
सब देते जायेंगे हमको 
अपने अनुभव अच्छे बुरे।

करना है अब हमको मेहनत 
पहले से कही ज्यादा 
तभी मिल पायेगा हमे 
हर ख़्वाब आँखों में पलता। 

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

दर दर भटक रहा हूँ

दर दर भटक रहा हूँ 
कुछ पाने की आस में 
प्यास लगी है जोरो की 
कुआँ है पास में 
बंधी है बाल्टी 
रस्सी के छोरो में 
घुमती है चकरी 
बाल्टी के डोरो में 
कोशिस की हमने भी 
अपनी तकनीको से 
की आ जाये पानी 
डोरे की बाल्टी से 
छलकती है बाल्टी 
पानी को छुने में 
भरती है पानी 
बाल्टी के पेंदे में 
खींचता हु डोरा 
अपने बाजु के जोरो से 
बाहर आता है पानी 
बाल्टी के भरने से |

शनिवार, 23 अगस्त 2014

परिवर्तन

इन्तेजार में बीत गई सर्द राते 
अब सुबह होने को है 
जीवन के इस डगर में 
परिवर्तन होने को है 

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

वो शाम

बड़ी नागवार गुजरी थी वो शाम 
जब किताबो के सारे हर्फ़ स्याह हो गए
कोशिश बहुत की हमने शब्दों को समेटने की
पर सारे हल्फ हवा हो गए |

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

शत शत नमन शहीदो तुमको

करता हूँ शत शत नमन देश के उन शहीदो को
जो मर मिटे देश के खातिर सहा दंष अंग्रेजो का 
हुई लाल ये धरती सारी 
जिनके अन्नंत बलिदानो से 
शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद
खुदीराम बोस, सुखदेव और राजगुरु
इनसब को देश तुम रखना याद 
लाला ,गांधी और सरदार भी थे
जिनके साथ था हिंदुस्तान 
स्वतंत्रता संग्राम में खड़ा एक साथ
सन सैतालिस में दिन वो आया 
अगस्त पंद्रह को तिरंगा लहराया 
लालकिले से नेहरू ने 
सबका फिर आभार जताया 
देश की सेवा में भी कितने 
हुए शहीद है तब से अबतक
हे हिंदुस्तान के प्रहरी जवानो  
श्रद्धा सुमन है अर्पित सब को 
शत शत नमन शहीदो तुमको|

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हार का विश्लेषण

खेलने क्रिकेट हम चले 
करके सब तैयारी रे 
हार गए हम पहले मैच में 
कब आएगी बारी रे 

हार का लिया पूरा संज्ञान 
हुआ विश्लेषण भारी रे 
गेंद फेंकने की जुगत में 
आंत मुह को आई रे 

बल्ले को जब हमने थामा 
गेंद विकेट पर जाये रे 
चौके छक्के मार ना पाये 
हुआ जीतना मुश्किल रे 

जिसने था अभ्यास किया 
जीत उसी ने पाई रे 
अब हमने है ठान लिया 
अबकी जीत हमारी रे |

शनिवार, 19 जुलाई 2014

गर्लफ्रेंड का तोहफा

मेरे दोस्त की बर्थडे पार्टी में 
उसकी गर्लफ्रेंड ने किया बवाल था  
केक पर दोस्त का नाम था  
साथ में दूसरी लड़की का नाम था 

लड़की के तेवर फिर गर्म हुए 
मेरे दोस्त का तेवर नरम हुआ 
लड़की को फिर जो गुस्सा आया 
फटे हाल हुआ दोस्त बेचारा 

लात घूसा चप्पल थप्पड़ की 
अब हुई यहाँ जो बारिश थी 
लगा भीगने दोस्त हमारा 
बहुत मस्त था सीन ये सारा 

बुधवार, 2 जुलाई 2014

सगाई का लड्डु

मेरे दोस्त की अभी अभी हुई है सगाई 
खुश है की अब जल्दी से मिलेगी लुगाई 
ना जाने कैसा इश्क हुआ है उनको भाई 
अब फ़ोन पर चिपके रहते है ओढ़ के रजाई 

होठ हिलते है केवल , कुछ आवाज नहीं होती  
एक दूसरे से ऐसे ही रात भर उनकी बात होती 
जान जानु सोनु बाबु बड़े प्यार से कह के बुलाते 
मीठे मीठे सपने में खोये यूं ही अक्सर रात बिताते 

मंगलवार, 24 जून 2014

धूम्रपान

बड़ा अजीब इत्तेफाक था 
ये वाकया हुआ मेरे साथ था 
मैं सड़क पर गतिमान था 
किनारे पेड़ विद्यमान था 

तभी सहसा 
हुआ एक हादसा 
पेड़ से गिरा 
एक सिगरेट जलता 

मैं हुआ स्तब्ध 
विचारो में मग्न 
क्या पेड़ भी रखते है 
धूम्रपान का शौख 

पहले तो कुछ पीड़ा हुई 
महसूस हुआ कलजुग है भाई 
इंसान तो इंसान यहाँ पर 
पेड़ भी करते है धूम्रपान 

सोमवार, 9 जून 2014

​ख्वाबो को ना रोको उड़ने से आज

​ख्वाबो को ना रोको 
उड़ने से आज 
पिंजरे का पंछी 
बन जायेगा 
जो उड़ गया आकाश में 
सारा जहां दिखा देगा 
फैलेगा तुम्हारे नाम का यश 
जहाँ तक ये ख़्वाब जा पायेगा ​
​ख्वाबो को ना रोको 
उड़ने से आज 
पिंजरे का पंछी 
बन जायेगा

सोमवार, 2 जून 2014

बारिश में बस का सफर

आज शाम की बारिश में 
बस का सफर अनोखा था 
कांच टूटी थी खिड़की की 
हर जोड़ में रिसाव था 

जैसे जैसे फिर दिन ढला 
बारिश का भी चादर फैला 
बस जैसे जैसे गतिमान हुआ 
खिड़की से पानी दाखिल हुआ 

हर मुसाफिर अब खिड़की से दूर हुआ 
जब पानी से तन सबका गिला हुआ 
खड़े हुए सब बस के भीतर 
जब जोड़ो से भी रिसाव हुआ 

बारिश ने फिर जोर लगाया 
पानी बस के भीतर आया 
बस में  दरिया का निर्माण हुआ  
हर मुसाफिर का तन गिला हुआ 

रास्ते में थे खड्डे अनेक 
बारिश में दिखते सब एक 
चालक बस को झटके देता 
पानी के छींटे ऊँचे उडाता 

जैसे तैसे सफर था काटा 
तब जाके मंजिल पर आया 
अब भी घर था दूर हमारा 
हमने भी तब छतरी डाला 

रविवार, 25 मई 2014

मेरे मित्र

कई मित्र मेरे 
जो पढ़ते थे कविता औरो की 
आज के दौर में 
रचनाकार है कविताओ के 

भटकते थे जो दर बदर 
एक नौकरी की तलाश में 
अपनी संस्था में 
लोगो को नौकरियां बाँट रहे है 

संघर्ष रत थे 
जो अध्ययन के छेत्र में 
सफल है अधयापन के छेत्र में 
वो चेहरे 

कभी जो सोचते थे 
निज लाभ का 
आज सबका भला 
सोच रहे है 

ख़्वाब जो देखे थे 
हमसब ने मिलकर 
औरो को उसके आगे का 
ख़्वाब दिखा रहे है 

शनिवार, 24 मई 2014

अकेलापन

खलता है अक्सर 
मुझको मेरा अकेलापन 
तरसता हु हरदम 
सबसे गप्पे लड़ाने को 
ख़ामोशी कहती है मुझको 
नज्मे गुनगुनाने को 
लिखता हुँ अब मै 
केवल समय बिताने को 

सोमवार, 12 मई 2014

मै और हम

मैं और तुम 
गर 
हम हो जाते
हर मंजिल
हासिल कर पाते 

मै और हम में 
मै अकेला रहता हु 
हम साथ साथ हो जाते है 
फिर हर बाधा 
हर मुश्किल से 
हम एक साथ टकराते है 
कुछ तुम काटो 
कुछ हम काटे 
मंजिल साथ में पाते है 

मै एक अकेला 
जब थक हार कर 
निराश होने को होता 
तुम आगे आकर के तब 
मै की मुश्किल करते हल 
मै एक राह में उलझा रहता
तुम भी एक नया राह दिखाते 
हम एक और एक ग्यारह होते 
हर मुश्किल से पार हम पाते 

इन्तेजार

कब से खड़े है हम राह में तेरे 
ए 'बस' अब आ और मुझे ले चल 
इन्तेजार की घड़ियाँ अब लम्बी हो चली 
खत्म होना तो जैसे भूल ही गयी है 
सब आते है सब जाते है 
पर तुम ना आते हो ना जाते हो 
क्यूँ तुम अक्सर खफा रहते हो 
जो मेरे आने पर नदारद रहते हो 

रविवार, 20 अप्रैल 2014

घर के जैसा स्वाद

पूरी चावल 
रसम सांभर 
साथ में दही, पापड़ 
चटनी और अचार 
खाते है हम अक्सर 
दोपहर के भोजन में आज 
कभी कभी आलू पराठा 
कभी तंदूरी रोटी चार 
खाने के बाद हरदिन 
हम मठ्ठा (मजगे) पीते यार 
पिज़्ज़ा भी है हमसब खाते 
बिरयानी का भोग लगाते 
अलग अलग रेस्तरा में जाते 
नया नया ब्यंजन हम खाते 
ज्वार की रोटी 
गाजर का हलवा 
मलाई कोफ्ता 
कुलचा और नान 
हमसब को भाते यार 
फिरभी नहीं है मिल पाता 
घर के जैसा स्वाद
फुलके संग सब्जी का 
अलग ही होता है अंदाज  
तलाश करते हम जिसका 
बेसब्री के साथ 
विरले ही मिल पाता है 
घर के जैसा स्वाद। 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

शायद मुझे नींद आ रही थी

दोपहर के बाद का समय था 
खा कर लौटे कुछ देर हो चला था 
आँखे भारी सी लग रही थी 
मन को आलस घेर रहा था 
देह कुछ करने को तैयार ना था 
बार बार जम्हाई आ रही थी 
कभी गर्दन को दाये झटकता 
तो कभी बाये झटकता 
कभी खुद को चिकोटी काटता 
कभी अंगुलिया चटकाता 
कभी पानी की दो घुंट पीकर 
दो चार कदम यूं ही चलता
कंप्यूटर पर कुछ लिख रहा था मै 
अंगुलिया स्वतः रुक सी गयी थी 
जाने क्या हो रहा था मुझे 
शायद मुझे नींद आ रही थी |

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मूर्ख दिवस

मूर्ख दिवस 
उत्कर्ष दिवस 
अप्रिल मास का 
प्रथम दिवस 

खुद को कहते 
मूर्ख आज लोग 
अपने क्षेत्र के 
विद्वान लोग 

ज्ञान का सागर अगाध है 
सबके पास उसकी प्यास है 
अकेला पारंगत कोई नहीं 
बुँदे सबके पास दो चार है 

सबमे कुछ गुण खास है 
उसमे वो विद्वान है 
उन गुणो को छोड़ शेष गुणो में 
हर कोई मूरखराज है 

जहा जहा ये शून्य है आता 
हर इंसान है मूर्ख कहाता 
इस शून्य से जो आगे बढ़ता 
उसका ही उत्कर्ष है होता 

रविवार, 30 मार्च 2014

घर ऑफिस

रोज रात को देर से जाना 
सुबह ऑफिस में जल्दी आना 
घर में केवल सोना खाना 
छुट्टी में भी काम है करना 

यूँ तो हरदम बस में जाना 
पर देर रात में कैब बुलाना 
किराया कैब का नगद में देना 
कंपनी में फिर क्लेम है करना 

कभी कभी जब समय हो अच्छा 
ऑफिस देर से जाना जल्दी आना 
चाय कॉफी का चुस्की लेना 
घंटो तक वो गप्पें करना 

हर इशू पर है मीटिंग करना 
कोडिंग कम बात ज्यादा करना 
लंच ऑवर में बाहर खाना 
ट्रेंनिंग सेशन में नींद का आना 

हर ऑफिस का है यही तराना 
हर एम्प्लॉई का है अलग फ़साना 
कोई खुश है तो कोई दुखी बेचारा 
घर ऑफिस का ये चक्कर सारा 

गुरुवार, 20 मार्च 2014

चुनावों की गहमा गहमी

चुनावों की गहमा गहमी में 
शब्दो के कटु वान से 
लड़ते है सारे नेता 
आपस में दिलों जान से 

भाजपा संग खड़े है मोदी 
राहुल कांग्रेस की शान है 
झाड़ू लेकर तैयार है केजरी 
धरने से आप का मान है 

मोदी है गुजरात दिखाते 
विकास का दामन फैलाते 
चाय पर है चर्चा करते 
गोधरा पर चुप हो जाते 

राहुल की है अलग कहानी 
भ्रष्टाचार महगाई की मारी ​
​अध्यादेश को कर के ख़ारिज 
प्रधानमंत्री बनने की है ख्वाहिस 

चोर चोर चिल्लाते केजरी 
प्रश्नो की वो बौछार हैं 
​देश को दिग्भ्रमित करते वो 
कांग्रेस का हथियार है 

अलग खड़ा है तीसरा मोर्चा 
मुलायम नितीश संग माया ममता ​
विजयी स्वप्न सब देख रहे है 
बच के रहना तुम जय ललिता 

आप करती सबसे सवाल 
खुद ना देती एक जवाब 
लोकसभा में जाने के खातिर 
दिल्ली का भी त्याग किया 

कई रामो को साथ में लेके 
नमो नमो का जाप किया
काशी में मोदी को भेजा
भाजपा ने ऐसे विस्तार किया

नयी पीढ़ी को टिकट दिलाके 
दिल्ली का एअरपोर्ट दिखाके
फ्लाई ओभर -मेट्रो में बिठा के 
कांग्रेस ने अपना गुणगान किया 

सीटों का सारा खेल है 
हर सीट का यहाँ मोल है 
हमारा दल निर्दोष है 
सामने वाला चोर है 

रविवार, 16 मार्च 2014

मिलजुल कर हमसब होली खेले

होलिका जली प्रहलाद बचा
सारा संसार रंगो से पटा 
घृणा बैर सब छोर छार के 
मिले एक दुसरे से गले लगा के 

अबीर उड़े गुलाल चले 
रंगो की बौछार पड़े 
क्या बच्चे क्या बुढ़े लोग 
रंगो में भीगे सबलोग 

कोई रंगो की बंदुक चलाये 
कोई गालो पर गुलाल मले 
कोई माथे पर टिका लगाये
कोई चरणो पर अबीर रखे 

गली गली में रंग उड़े 
कही कही हुड़दंग मचे 
जैसे जैसे ये दिन बढे 
सब पर होली का रंग चढ़े 

हर घर में पकवान बने 
दही-बड़े का भोग लगे  
छोला कटहल भी खुब चले 
किसी पर भंग का रंग चढ़े 

सदभाव सौहाद्र सीने  में बसा के 
रंग अबीर की थाल सजा के 
प्रेम भाईचारा का संदेश लेके  
मिलजुल कर हमसब होली खेले 

मंगलवार, 11 मार्च 2014

जीवन का रंगमंच

प्रातः जगने से लेकर 
रोज रात को सोने तक 
दफ्तर के कामों से लेकर 
घर में चूल्हा जलने तक 

बस में धक्के खाने से 
रोज देर से आने तक 
सही फैसला लेने पर 
गलत कुछ हो जाने तक 

इंटरनेट पर मेल चेकिंग से 
टीवी सीरियल देखने तक 
जीवन के उत्थान पतन से 
थक कर चूर होने तक 

अक्सर सोचा करता हुँ मैं 
फुर्सत के छण पाने के बाद 
क्या पाया क्या खो गया है 
क्या सोचा क्या हो गया है 

हाथों में कंचे पतंग से 
धरती आकाश के मापने तक 
बचपन के खेलों से लेकर 
दफ्तर के मुश्किल कामों तक 

गावों की तंग गलिओं से लेकर 
अन्नंत आकाश के छोरो तक
विद्यालय के प्रांगण से लेकर  
दोस्तों संग मौज़ उड़ाने तक 

दुर देश में रहने को लेकर 
घर का खाना खाने तक 
जीवन के हर रंग में रंगकर 
हर सपने पुरा करने तक 

सबने साहस खुब दिखाया 
मिलकर है इतिहास बनाया 
जो चाहा था सबकुछ पाया 
जैसा चाहा वैसा पाया 

फिर नया सबेरा आने को है 
अनुभव नये दिलाने को है 
जीवन के इस रंगमंच पर देखो 
रोमांच नये कराने को है