लल्लू भईया घर से निकले,
सुबह में आफिस जाने को,
बीच सड़क में जाम लगा था,
अब नही राह कोई जाने को,
बीत गया जब जाम में घंटा,
आफिस लगा बुलाने को,
पगडंडी पर भागे भईया,
आफिस जल्दी जाने को,
वहाँ भी लंबी लाइन खड़ी थी,
लल्लू भईया पछताए रे,
बड़ी मुश्किल से लल्लू भईया,
फिर सड़क में वापस आये रे,
इस आने जाने के क्रम में,
लल्लू भईया चकराए रे,
थक हार के लल्लू भईया,
वापस घर को आये रे।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
सोमवार, 25 सितंबर 2017
ट्रैफिक जाम
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