जब से ये खबर चर्चा ए आम हुई है,
सबके स्वप्न साकार करते है हम,
लल्लू भईया ना जाने क्यों,
नए नए स्वप्न देखने लगे है,
अभी पिछले हफ्ते की बात है,
लाटरी का था स्वप्न जो देखा,
मालामाल हो गए लल्लू भईया,
अपनी भी थी चांदी चांदी,
फिर जाने कैसा दुःस्वप्न था देखा,
बड़े दुखी थे लल्लू भईया,
मिलना जुलना भूल गए वो,
महीना भर हमसे दूर रहे वो,
बाद में हमको मालूम हुआ ये,
महिलाओं के हाथों पिट गए वो,
स्वप्न में ये सब देख लिए थे,
तभी लल्लू भईया दूर हुए थे।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
गुरुवार, 21 सितंबर 2017
स्वप्न
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