शनिवार, 2 सितंबर 2017

फ़ोन

पर्दे के पीछे की तस्वीर थी कुछ ऐसी,
कुर्सी पे बैठी हो कोई शख्शियत जैसी,
सर झुके थे बंदगी में उसके
हाथ उठे थे सजदे में जैसे,
तभी हवा का झोंका से आया,
परदे को उसने जरा सरकाया,
सत्य नजर के सामने था आया,
फ़ोन पर बंदा बिजी था भाया।
-- सुमन्त शेखर।

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