मंगलवार, 26 सितंबर 2017

तरकश

तरकश में तीर अभी और भी हैं,
कितने जख्म खाओगे तुम,
कुछ कतरे खून के बचा लो अभी,
लौट के घर को जाओगे तुम।
--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 25 सितंबर 2017

ट्रैफिक जाम

लल्लू भईया घर से निकले,
सुबह में आफिस जाने को,
बीच सड़क में जाम लगा था,
अब नही राह कोई जाने को,
बीत गया जब जाम में घंटा,
आफिस लगा बुलाने को,
पगडंडी पर भागे भईया,
आफिस जल्दी जाने को,
वहाँ भी लंबी लाइन खड़ी थी,
लल्लू भईया पछताए रे,
बड़ी मुश्किल से लल्लू भईया,
फिर  सड़क में वापस आये रे,
इस आने जाने के क्रम में,
लल्लू भईया चकराए रे,
थक हार के लल्लू भईया,
वापस घर को आये रे।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

स्वप्न

जब से ये खबर चर्चा ए आम हुई है,
सबके स्वप्न साकार करते है हम,
लल्लू भईया ना जाने क्यों,
नए नए स्वप्न देखने लगे है,
अभी पिछले हफ्ते की बात है,
लाटरी का था स्वप्न जो देखा,
मालामाल हो गए लल्लू भईया,
अपनी भी थी चांदी चांदी,
फिर जाने कैसा दुःस्वप्न था देखा,
बड़े दुखी थे लल्लू भईया,
मिलना जुलना भूल गए वो,
महीना भर हमसे दूर रहे वो,
बाद में हमको मालूम हुआ ये,
महिलाओं के हाथों पिट गए वो,
स्वप्न में ये सब देख लिए थे,
तभी लल्लू भईया दूर हुए थे।
--सुमन्त शेखर।

शनिवार, 2 सितंबर 2017

फ़ोन

पर्दे के पीछे की तस्वीर थी कुछ ऐसी,
कुर्सी पे बैठी हो कोई शख्शियत जैसी,
सर झुके थे बंदगी में उसके
हाथ उठे थे सजदे में जैसे,
तभी हवा का झोंका से आया,
परदे को उसने जरा सरकाया,
सत्य नजर के सामने था आया,
फ़ोन पर बंदा बिजी था भाया।
-- सुमन्त शेखर।