रथ को रोकने के ख्वाब थे उनके,
जो दामन ना बचा पाए है अपने,
समझाया था इशारो में आपको,
यही मौका है बच के निकल लो,
समझ की कमी थी शायद उनमे,
तभी तो मंत्री जी साथ छोड़ गए,
भाईचारा में ना भाई रहा ना चारा,
मान भी लो नीतीश ना रहा तुम्हारा,
समीकरण भी कैसे है रंग बदलता,
सत्ता बदल गयी पर मंत्री ना बदला।
--सुमन्त शेखर।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
बुधवार, 26 जुलाई 2017
सत्ता परिवर्तन
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