मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
ना दशहरी है भाया, ना मालदा है आया, अल्फांसो, मल्लिका, बैगनपल्ली, सिंधुरा, बादामी भी लगा फीका जब केन्ट को मैंने चखा। कोई आम हो ऐसा, जो तुम्हे लगा हो अच्छा, जल्दी से बता दो रे भईया, मुझे भी है चखना। ©सुमन्त शेखर।
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