गुरुवार, 30 मार्च 2017

विमान यात्रा

इंडिगो विमान में सांध्यकालीन यात्रा के दौरान महसूस किये गए कुछ पलों को आपसे साझा करना  चाहूंगा।

उड़ते हुए विमान से,
जब नीचे देखा रात में,
लगा दहकते अंगार बिछे हैं,
बिजली से रोशन घरबार से।
ऊपर चाँद,
नीचे अंगार,
मध्य में दोनों के,
इंडिगो विमान,
भीतर प्रकाशमान,
बहार घना अंधकार,
अँधेरे में लगते जुगनु,
प्रकाश से रोशन अकेले घर,
नीचे सड़कें है मानो,
कोई जलता हुआ शाख,
कहीं जलते हुए कोयले,
पर बुझी हुई राख,
कहीं एकदम लाल,
कहीं उजली सी दरार,
अन्य जगहों पर है,
कला अँधेरा बरक़रार,
तेज हवा के झोकों की,
आ रही ये आवाज,
परिचारिकायें कर रही,
चाय, पानी का व्यापार,
कोई तो पूछ ले,
इनकी मुस्कराहट का राज,
विमान के डैनों पर,
वो भुकभुकाता बल्ब,
लगता जैसे बता रहा है,
घबराओ मत, मैं हु इधर,
ठीक सर के ऊपर,
लगा है एसी का बटन,
घुमा के सेट करो
हवा ज्यादा चाहिए या कम,
बगल में लगा है एक स्पीकर,
जिसपर कैप्टेन करे है वेलकम,
और परिचारिकायें बताएं,
कौन है आज का विमान दल,
कुर्सी की पेटी बांध ले,
विमान उड़ने को तैयार है,
विमान में कितने है द्वार,
क्या आपातकालीन विचार है,
फिर से एक आवाज आई है,
विमान गंतव्य पर उतरने को तैयार है,
कर्मी दल को यह उम्मीद है,
कि उन्होंने यात्रा सुखद कराई है।
धन्यवाद....
©सुमन्त शेखर।

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