गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

गुलाब

गुल से खिलता है गुलाब,
धतूरे को कौन पूछता है,
अरे मोहब्बत का है ये बाजार,
हमे देखता कौन है।

परवानो से है पटा पड़ा,
ये सारा बाजार,
ढूंढ सको तो ढूंढ लो,
तुम अपना सच्चा प्यार,

हर रांझे को हीर मिले,
हर मजनू को लैला,
घर जाने का समय हो गया,
मैं चला बांध के थैला।

--सुमन्त शेखर।

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