गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

हेलमेट

पुलिसिया जाँच हेलमेट को लेकर हो रहा है। तब लोग पुलिस पर आरोप लगाते है कि पुलिस को कोई काम है। इसी विषय से प्रेरित है।

सर है जिनके लोहे के,
वो इस सब से नाराज है,
दोषारोपण करते हरदम,
पुलिस को नही कुछ काम है,
बेकारी में समय बिताने,
हेलमेट पर चक्का जाम है,
खुद सुधरोगे आप जो भईया,
भला आपका होवेगा,
सर सलामत, ना पुलिस की चिकचिक,
सौ दो सौ बच जाएगा।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

लकड़ी की गाड़ी

वो लकड़ी की गाड़ी,
मिट्टी का रोड,
चलाते थे जिसे,
बचपन मे हर रोज,
ना दुपहिया, ना चौपहिया,
थी वो छोटी सी तिपहिया,
सिखाया था जिसने,
घुटनो से ऊपर उठना,
पैरो पर खड़े होकर,
सीना ताने चलना।
--सुमन्त शेखर

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

दीपावली की शुभकामनाएं

है दुआ यही, धनवान बनो तुम,
स्वस्थ निरोग क्षमतावान बनो तुम,
लालच तृष्णा द्वेष क्रोध अहं का,
इस जीवन मे ही त्याग करो तुम,
दया प्रेम की भाषा बनो तुम,
सदा श्रेष्ठ इंसान बनो तुम।
--सुमन्त शेखर।

दीपावली

दीपमाला सर्वत्र बिछे,
घर आंगन सब चमके,
रिद्धि सिद्धि के स्वामी की,
सब पर कृपा बरसे,
माँ लक्ष्मी की दया से कोई,
जन मानस ना छुटे।
--सुमन्त शेखर।

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

एक दिया सेना के नाम।

दूर हैं अपने घरों से आज,
सरहदों पर हैं हरदम तैनात,
जल थल हो या आकाश,
नक्सल हो या आतंकवाद,
चुनोतियों से लड़ना उनका काम,
शौर्य पराक्रम का लेते हैं जाम,

तरसते अक्सर हर घंटे दिन रात,
मिल जाये अपनो का साथ,
चलो जोड़ ले अपना हाथ,
दिया दीवाली का ले लो साथ,
करें खुशियों की एक शाम,
देश के वीर सपूतों के नाम।
-सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

सैलाब

इस मौसम में देखो बारिश में क्या कहर ढाया है,
मेरे शहर में अब हर जगह सैलाब आया है,

शजर था उस जमीं पे कभी ये खयाल आया है,
हर मंजर अब उजड़ा उजड़ा सा नजर आया है,

पक्की जमीनों का हौसला भी अब टूटने लगा है,
शायद सड़क थी यहां भी मुझको खयाल आया है,

भरने लगे है नदी नाले सब,
कोई फरियाद रंग लाया है,
बरसते है बादल रात दिन अब हर बखत,
मौसम में शायद कोई बदलाव आया है,

की बस कर कितना और बरसेगा तु बादल,
मेरे शहर में तू समंदर ले आया है।
--सुमन्त शेखर।

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

शहर के पोखरा v2

लगल बा जाल मुसहरी,
झगवा से बचावे ला,
पोखरा के इ ह गंदा पानी,
रोज आऊ करियाए ला,
लोग तबहुँ ना कुच्छो सोचे,
ओकरे में कूड़ा डाले ला,
शहर में पोखरा घटे लगल बा,
सरकार कबहू ना सोचे ला,
करखनवो के गंदा पानी,
सब पोखरे मे डाले ला,
साफ करेला केहू ना,
खाली भाषण बाजी करेला,
उकरे में से फिर एग्गो दुग्गो,
सफाई के जिम्मा लेवेला,
गिन्नल चुन्नल काम करेला,
फ़ोटोवा खूब खिचावे ला,
उकरे से फिर तन्नी मन्नी,
जान पोखरा में आवेला।
--सुमन्त शेखर।

तालाब शहर का

लगल बा जाल मुसहरी,
झगवा से बचावे ला,
तलाबवा के पानी करियाइल,
लोग केतना कूड़ा डाले ला,
घटल बा तालाब शहर में,
सरकार कबहू ना सोचे ला,
करखनवो के गंदा पानी,
सब उकरे मे डाले ला,
साफ करेला केहू ना,
सब भाषणबाजी करेला,
उकरे में से फिर एगो दुगो,
सफाई के जिम्मा लेवेला,
जेतना शक्ति ओतना भक्ति कह,
सब फ़ोटो खूब किचावे ला,
उकरे से फिर तन्नी मन्नी,
जान तलाब में आवेला।
--सुमन्त शेखर।

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

ट्रैफिक जाम v2

लल्लू भईया घर से निकले,
सुबह में आफिस जाने को,
बीच सड़क में जाम लगा था,
अब राह नही कोई जाने को,
बीत गया जब जाम में घंटा,
आफिस लगा बुलाने को,
पगडंडी पर भागे भईया,
आफिस जल्दी जाने को,
वहाँ भी लंबा लाइन दिखा फिर,
लगा जाम सताने को,
बड़े पापड़ बेले लल्लू भईया ने,
वापस सड़क पे आने को,
आने जाने के चक्कर में,
लगा पसीना आने को,
थके हारे जब लल्लू भईया,
वापस चले घर आने को।
--सुमन्त शेखर।

रदीफ़ ठीक करने का प्रयास है।

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

तरकश

तरकश में तीर अभी और भी हैं,
कितने जख्म खाओगे तुम,
कुछ कतरे खून के बचा लो अभी,
लौट के घर को जाओगे तुम।
--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 25 सितंबर 2017

ट्रैफिक जाम

लल्लू भईया घर से निकले,
सुबह में आफिस जाने को,
बीच सड़क में जाम लगा था,
अब नही राह कोई जाने को,
बीत गया जब जाम में घंटा,
आफिस लगा बुलाने को,
पगडंडी पर भागे भईया,
आफिस जल्दी जाने को,
वहाँ भी लंबी लाइन खड़ी थी,
लल्लू भईया पछताए रे,
बड़ी मुश्किल से लल्लू भईया,
फिर  सड़क में वापस आये रे,
इस आने जाने के क्रम में,
लल्लू भईया चकराए रे,
थक हार के लल्लू भईया,
वापस घर को आये रे।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

स्वप्न

जब से ये खबर चर्चा ए आम हुई है,
सबके स्वप्न साकार करते है हम,
लल्लू भईया ना जाने क्यों,
नए नए स्वप्न देखने लगे है,
अभी पिछले हफ्ते की बात है,
लाटरी का था स्वप्न जो देखा,
मालामाल हो गए लल्लू भईया,
अपनी भी थी चांदी चांदी,
फिर जाने कैसा दुःस्वप्न था देखा,
बड़े दुखी थे लल्लू भईया,
मिलना जुलना भूल गए वो,
महीना भर हमसे दूर रहे वो,
बाद में हमको मालूम हुआ ये,
महिलाओं के हाथों पिट गए वो,
स्वप्न में ये सब देख लिए थे,
तभी लल्लू भईया दूर हुए थे।
--सुमन्त शेखर।

शनिवार, 2 सितंबर 2017

फ़ोन

पर्दे के पीछे की तस्वीर थी कुछ ऐसी,
कुर्सी पे बैठी हो कोई शख्शियत जैसी,
सर झुके थे बंदगी में उसके
हाथ उठे थे सजदे में जैसे,
तभी हवा का झोंका से आया,
परदे को उसने जरा सरकाया,
सत्य नजर के सामने था आया,
फ़ोन पर बंदा बिजी था भाया।
-- सुमन्त शेखर।

बुधवार, 23 अगस्त 2017

परिवहन

परिवहन अब जंग बनत,
हम पार हर रोज करत,
कभी कभी पानीपत,
कही कही कीचड़ पथ,
कभी कही ट्रक उलट,
कही खड्ड में सड़क दिखत,
सब धीरे चलत,
है जाम बनत।
--सुमन्त शेखर।

बुधवार, 26 जुलाई 2017

सत्ता परिवर्तन

रथ को रोकने के ख्वाब थे उनके,
जो दामन ना बचा पाए है अपने,
समझाया था इशारो में आपको,
यही मौका है बच के निकल लो,
समझ की कमी थी शायद उनमे,
तभी तो मंत्री जी साथ छोड़ गए,
भाईचारा में ना भाई रहा ना चारा,
मान भी लो नीतीश ना रहा तुम्हारा,
समीकरण भी कैसे है रंग बदलता,
सत्ता बदल गयी पर मंत्री ना बदला।
--सुमन्त शेखर।

रविवार, 16 जुलाई 2017

शिकायत

लोगो को शिकायत है हमसे,
की हम बात नही करते उनसे,
एक बार आवाज दे के तो देखो,
कैसे बात नही करते हम तुमसे।

हां मशरूफ हूँ मैं काम मे अपने,
बस गुफ्तगू का वक्त नही मिलता,
जिंदगी की इस भागदौड़ में,
मैं कई बार खुद से नही मिलता।

पर ये भी तो सच है,
जब आवाज दिया किसी ने,
दो मिनट समय निकाल के,
उसी वक्त बात किया हम ने।
--सुमन्त शेखर।

मंगलवार, 20 जून 2017

याद है

बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है,
भीड़ भाड़ में बस में अक्सर,
छक के चढ़ना याद है,
सीट मिलने की आस में,
वो डट के रहना याद है,
चाहे बैग से या पैर से,
सीट के पासअड़े रहना याद है,
रोज रोज के सफर में अक्सर,
सबसे मिलना जुलना याद है,
मिले सीट तो फिर,
अच्छे से तन के सोना याद है,
कूदे बस जो गड्ढे में फिर
नींद से जगना याद है,
अपने स्टाप का अक्सर,
नींद में छूटना याद है,
फिर दूसरी बस से अक्सर,
वापस आना याद है,
पास रहने से पास में अपने,
बस में चढ़ना उतरना याद है,
बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है।
बीएमटीसी की बस में,
वो धक्के खाना याद है,
--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 22 मई 2017

नींद

रातभर मैं करवटें बदलता रहा,
रातभर मैं किश्तों में सोता रहा,
नींद तो आंखों को आती थी,
पर रह रह कर कही चली जाती,
रात भर मौसम को कोसते रहे,
रह रह कर पानी भी पीते रहे,
और ये कमबख्त नींद भी मुझे,
ना जाने कौन कौन से ख्वाब दिखाती रही,
कभी सपने में मुझे हँसाती, कभी रुलाती,
बार बार मुझे भगाती रहती,
मैं फिर उठता, पानी पीता और,
अगले सपने में भागने को तैयार रहता।
--सुमन्त शेखर

तड़ित

प्रचंड प्रबल वेग से,
पवन गतिमान है,
मेघाभिमान नभ में,
तड़ित प्रकाशमान है,
जलकणों में टूट से,
शीत का संचार है,
नवबिन्दु के प्रभाव से,
अंकुर में भी जान है।

लो हुई मेघों में मार है,
तड़ित की झंकार है,
जलबिंदु की बौछार है,
नभ का धरा पर वार है,
रात्रि का उसे साथ है,
सर्वत्र अंधकार है।
--सुमन्त शेखर।

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

केन्ट आम

ना दशहरी है भाया,
ना मालदा है आया,
अल्फांसो, मल्लिका,
बैगनपल्ली, सिंधुरा,
बादामी भी लगा फीका
जब केन्ट को मैंने चखा।
कोई आम हो ऐसा,
जो तुम्हे लगा हो अच्छा,
जल्दी से बता दो रे भईया,
मुझे भी है चखना।
©सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 30 मार्च 2017

विमान यात्रा

इंडिगो विमान में सांध्यकालीन यात्रा के दौरान महसूस किये गए कुछ पलों को आपसे साझा करना  चाहूंगा।

उड़ते हुए विमान से,
जब नीचे देखा रात में,
लगा दहकते अंगार बिछे हैं,
बिजली से रोशन घरबार से।
ऊपर चाँद,
नीचे अंगार,
मध्य में दोनों के,
इंडिगो विमान,
भीतर प्रकाशमान,
बहार घना अंधकार,
अँधेरे में लगते जुगनु,
प्रकाश से रोशन अकेले घर,
नीचे सड़कें है मानो,
कोई जलता हुआ शाख,
कहीं जलते हुए कोयले,
पर बुझी हुई राख,
कहीं एकदम लाल,
कहीं उजली सी दरार,
अन्य जगहों पर है,
कला अँधेरा बरक़रार,
तेज हवा के झोकों की,
आ रही ये आवाज,
परिचारिकायें कर रही,
चाय, पानी का व्यापार,
कोई तो पूछ ले,
इनकी मुस्कराहट का राज,
विमान के डैनों पर,
वो भुकभुकाता बल्ब,
लगता जैसे बता रहा है,
घबराओ मत, मैं हु इधर,
ठीक सर के ऊपर,
लगा है एसी का बटन,
घुमा के सेट करो
हवा ज्यादा चाहिए या कम,
बगल में लगा है एक स्पीकर,
जिसपर कैप्टेन करे है वेलकम,
और परिचारिकायें बताएं,
कौन है आज का विमान दल,
कुर्सी की पेटी बांध ले,
विमान उड़ने को तैयार है,
विमान में कितने है द्वार,
क्या आपातकालीन विचार है,
फिर से एक आवाज आई है,
विमान गंतव्य पर उतरने को तैयार है,
कर्मी दल को यह उम्मीद है,
कि उन्होंने यात्रा सुखद कराई है।
धन्यवाद....
©सुमन्त शेखर।

सोमवार, 27 मार्च 2017

योगिया

योगिया के आदेश पर,
यूपी में नवरात्र भईल,
राम मंदिर छा गइल,
मांस मच्छी बंद भईल।

भगवा के खेल बा,
विरोधी सब जलल बा,
फैलल इ अफवाह बा,
कि जोगिया न पुरा सेकुलर बा।

गोरखनाथ के मंदिर दिखल,
जहाँ न धरम-जाति के नाम दिखल,
जहाँ हिंदु मुस्लिम एक लगल,
केकरा महंत सेकुलर बुझल।

--©सुमन्त शेखर

सोमवार, 20 मार्च 2017

मुखिया

यूपी के चाल देख ए बबुआ,
मोदी के पीछे चलल हे योगिया,
आज जे है प्रदेश में मुखिया,
कल हो जाई पुरे देश के मुखिया।
--सुमन्त शेखर।

रविवार, 12 मार्च 2017

होलिका दहन

होलिका दहन हो रहा है
जला दो आज,
अपने भीतर बसे,
अहंकार, तृष्णा,
ईर्ष्या, द्वेष,
तमस को,
कल फिर मिलेंगे,
भाईचारे के सन्देश के साथ,
प्रेम, सौहाद्र की चेतना लिए,
होली की शुभकामनाओं के साथ,
आप सबो को होली की मुबारकबाद।
-- सुमन्त शेखर 🙏

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

वाकया

गेट तो हमने भी उड़ाया था,
दीवार के बारे में सोचा भी नहीं,
वो वाकया भी बड़ा गजब था,
जो रास्ते में हमे दिखाई दिया।

वो तो एक ट्रक निकला,
जो हमसे आगे बढ़ गया,
गेट और दीवार को छोड़,
घर के भीतर घुस गया।

मेहरबाँ था आज ऊपरवाला,
नुकसान केवल आर्थिक निकला,
सड़क किनारे घर होने का,
ये भी एक नुकसान निकला।

घर था वो बड़ा मजबूत वाला,
करोड़ पति के रुतबे वाला,
ढह गया दीवार आज उसका,
ये दीवार नहीं, रुतबा था उसका।

--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

चकोर

हमने चाँद पे नजरें लगा रखी थी,
की कहीं चाँद नजरों से ओझल ना होजाये,
कम्बख्त बादल आ गए कहीं से,
और हम चकोर ना हो पाए।
--सुमन्त शेखर।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

गुलाब

गुल से खिलता है गुलाब,
धतूरे को कौन पूछता है,
अरे मोहब्बत का है ये बाजार,
हमे देखता कौन है।

परवानो से है पटा पड़ा,
ये सारा बाजार,
ढूंढ सको तो ढूंढ लो,
तुम अपना सच्चा प्यार,

हर रांझे को हीर मिले,
हर मजनू को लैला,
घर जाने का समय हो गया,
मैं चला बांध के थैला।

--सुमन्त शेखर।