सोमवार, 25 अप्रैल 2016

बारिश के बादल

बादल छाये थे बड़े घनेरे,
अब बारिश होने को थी,
मन का मयुर उतावला हो चला था,
शायद आज तन गिला होना था,
तभी बादलों का गड़ गड़ाना हुआ,
पानी की छोटी छोटी बुँदे,
आसमान से धरती की तरफ,
तीव्र वेग से आती हुई,
जब धरा से टकराई,
एक पफ की आवाज आई,
मिट्टी की एक सोंधी सी खुशबु,
मेरे मन को भाई,
फिर एकाएक ठंडी हवाए आई,
डर लगा जैसे ये बारिश न भगाए,
कुछ बूँद ही सही,
मेरे घर के छत पे आये,
फिर कुछ थमी हवाए,
गीली हुई थी अब ये फ़िज़ाएं,
ठंडक का एहसास मिला है,
बाहर सब साफ सुथरा है,
अब बस ऐसे ही बारिश हो,
जरुरत भर जितनी हो,
कुछ फूल कलियाँ अब खिल जाएँगी,
मुरझाये पोधे जागेंगे,
बस बादल तू ऐसे ही आना,
हर गली खेत को सदा भिगाना,
रहे न सुखा जग में कही,
बादल तू अच्छे से आना।
--सुमन्त शेखर।