सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

कुरुक्षेत्र

हस्तिनापुर में फिर छिड़ा है,
सँघर्ष देखो कुरुक्षेत्र का।
भाई नहीं है लड़ रहे
लड़ रही है जनता।

कोई शकुनि बना यहाँ तो,
कोई दुर्योधन बन लूट रहा,
मूक हुए है भीष्म पितामह,
अपने कर्त्तव्य की जंजीरो से।

कहा छुपे हो कलजुग के कृष्णा,
सकल संसार है ढूंढ रहा,
सब मनुजो को राह दिखा,
सत्य के दर्शन करवा।

गिने चुने दो चार नमुने,
अब बसते हर राज्य में,
दिग्भ्रमित करने के खातिर,
वो चलते रहते चाल अनेक।

भारत माँ के वीर सपूतों,
क्यों फंसते हो तुम भ्रमजाल में,
बुद्धि विवेक से परचम लहराओ,
तुम भारत की शान हो।