कुछ दिनों पूर्व की आपबीती से प्रेरित है। जब ऑफिस का काम मुझपर हावी हो रहा था।
तबियत नासाज़ थी मेरी,
घर जा के सो गया मैं,
किस्मत ख़राब थी मेरी,
स्वप्न में फिर खो गया मैं।
काम में डूबा था इतना,
स्वप्न में भी लैपटॉप खोल गया मैं,
आउटलुक ने हैरान किया,
बग के रिपोर्टिंग ने परेशान किया,
टेक्नोलॉजी का बुलबुला था,
मेरे शरीर से वो निकलता था,
समस्याएं थी बहुत सी पर,
सारे को हल कर गया मैं,
जो भी काम था ऑफिस का
स्वप्न में ही निपटा गया मैं,
बड़ा प्रसन्न था अब चित्त मेरा,
अब ना होगा नया बखेड़ा,
स्वेद से तन गिला था,
जब मैं होश में आया था,
तब जाकर एहसास हुआ,
स्वप्न मेरा सलोना था।
--सुमन्त शेखर
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