शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

ऐ बरसते बादलो

ऐ बरसते बादलो,
यू ना बरसो सब जगह,
बरसना ही है तो बरसो वहाँ,
इक बूंद को तरसते लोग जहा,

माना कि तूने भर दिए है,
हर गड्ढ़े हर नाली,
पर नहीं मिला है जीवों को,
पिने का साफ पानी,

मत बरस तू इतना ज्यादा,
मेरे शहर में,
नहीं यहाँ मिट्टी की जमीन,
अब कंक्रीट खाली,

ना जायेगा पानी जमीन के भीतर,
बह जायेगा संग नाली,
सड़को पर भरेगा पानी,
सबको होगी बहुत परेशानी,

ऐ बरसते बादलो,
यू ना बरसो सब जगह,
बरसना ही है तो बरसो वहाँ,
इक बूंद को तरसते लोग जहा।

--सुमन्त शेखर।

बुधवार, 27 जुलाई 2016

हड़ताल

माना के मेरे शहर में हड़ताल थी,
शहर में सारी बसें बंद पड़ी थी,
सोचते थे सड़क खाली होगी शायद,
गाड़ियों की लंबी कतार दिखी आज,

मजाल है कि गाड़ी आगे बढ़ जाये,
जैसे अंगद का पैर है, वही जम जाये,
बारिश का कहर ऊपर से और बरपा,
सड़को पर कोई तालाब जन्मा जैसा,

मेरे ऑफिस के बाहर कोई चक्रव्यूह बना,
जिससे भीतर आने का मार्ग अवरुद्ध हुआ,
दस मिनटो का सफर कई घंटों में तब्दील हुआ,
कुछ देर के लिए ही, पूरा शहर स्थिर हुआ,

बस बिन पैसेंजर बदहाल हुआ,
बस बिन सड़को पर ट्रैफिक जाम हुआ,
सड़को पर पिकनिक सा माहौल हुआ,
विशुद्ध सेल्फी और व्हट्सएप फिर दौर चला।
-- सुमन्त शेखर।

स्वप्न सलोना

कुछ दिनों पूर्व की आपबीती से प्रेरित है। जब ऑफिस का काम मुझपर हावी हो रहा था।

तबियत नासाज़ थी मेरी,
घर जा के सो गया मैं,
किस्मत ख़राब थी मेरी,
स्वप्न में फिर खो गया मैं।

काम में डूबा था इतना,
स्वप्न में भी लैपटॉप खोल गया मैं,
आउटलुक ने हैरान किया,
बग के रिपोर्टिंग ने परेशान किया,

टेक्नोलॉजी का बुलबुला था,
मेरे शरीर से वो निकलता था,
समस्याएं थी बहुत सी पर,
सारे को हल कर गया मैं,

जो भी काम था ऑफिस का
स्वप्न में ही निपटा गया मैं,
बड़ा प्रसन्न था अब चित्त मेरा,
अब ना होगा नया बखेड़ा,

स्वेद से तन गिला था,
जब मैं होश में आया था,
तब जाकर एहसास हुआ,
स्वप्न मेरा सलोना था।
--सुमन्त शेखर

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

बातें दो चार।

खफा है दोस्त मेरा,
पिछले कुछ दिनों से,
कुछ कहता नहीं अब वो हमसे,
कोई राज दफ़न है सीने में,

ये जरुरी है की मुलाकातें हो,
मुझसे और तुमसे चंद बातें हो,
मिट सकते है गीले शिकवे,
चाहे कुआँ हो या खाई हो।

खामोशियों से तेरी,
हर बात सीने में दफ़न रह जायेगा,
ना कभी वो जिक्र में होगा,
ना सुलझ पायेगा कभी।

गर खता हुई है मुझसे,
तो मुझे उसका इल्म करा दे,
खामोश रहने से तेरे,
खता माफ़ कौन करे।

मजबूर हो सकते है कल अपने हालात,
चाह कर भी न हो पाये अपनी बात,
क्यों करें हम इसका इंतेजार,
चलो मिलकर करे हम बातें दो चार।

-- सुमन्त शेखर

मैं और मेरी गाड़ी।

मेरी नयी कार,
चलती है बेमिसाल,
सब चलाएं तो है काबू में,
मुझसे है बेकाबू यार।

नया नवेला मैं वाहन चालक,
धीरे धीरे चलती कार,
दसवे दिन ही ठोकी मैंने,
मेरे ऑफिस का था द्वार।

बीमा से फिर मिली जो राशी,
कुछ और मिलाकर भुगतान किया,
वाहन चालन के स्वप्न का,
फिर समय ने कुछ तिरस्कार किया।

महीने भर मैंने फिर,
अपनी शक्ति का भंडार किया,
लिया वाहन संग मित्र था मेरे,
सड़को पर चालन का ज्ञान लिया।

अब है हुआ विस्वास मुझे,
वाहन चालन का है भान मुझे,
निःसंकोच चलाना सीख रहा हूँ,
सड़को पर सरपट दौड़ रहा हूँ।

गति को नियंत्रित करना है,
पहिये को दिशा भी देना है,
संकेत सभी को करना है,
नयी राहो से  गुजरना है।

राजमार्ग या मुख्य सड़क,
सब से रोज गुजरना है,
सब हालातो में अब तो मुझे,
मेरी गाड़ी पे काबू पाना है।

--सुमन्त शेखर