देख रहा हुँ मैं बादलों का चमकना
दुर कही हो रहा है उनका बरसना
रात के इस अँधेरे में काले अंधेरे में
बादलों के मशालों का जलना
पलक झपकते ही फिर कहीं खो जाना
अंधेरे में युं ही चमकते रहना
हमको यह बतलाता है
स्थाई नहीं है कुछ भी यहाँ
फिर तु क्यों सभी से लड़ता है
अपने अहंकार की खातिर
क्यों मित्रों को खोता है
चलो छोड़े हम अपना स्वार्थ
मिलकर बनाएं हम सुखद संसार।
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
सुखद संसार
पौधे।
आज फिर कुछ पोधे लगाए है हमने
सींचा भी है जड़ो को उनकी
कुछ वर्षो में पोधे से पेड़ बनेंगे
उनमे फिर जब फल आएंगे
शाखें निचे झुक जाएँगी
पर स्थिरता इनकी कम न होगी
आता है जब आंधी तुफान
करते सब उनका सम्मान
जो रहता खड़ा अहंकार में अपने
मूल समेत उखड़ जाता वो जड़ से
सिख बहुत कुछ मिलती है इनसे
रहो स्थिर सदा सुख दुःख में
परोपकार का भाव हो मन में
सबको एक बराबर समझो
अहंकार के न साथ खड़े हो
सेवा करना परम धेय्य हो
पग जमीन पर सदा टीके हों।
सींचा भी है जड़ो को उनकी
कुछ वर्षो में पोधे से पेड़ बनेंगे
उनमे फिर जब फल आएंगे
शाखें निचे झुक जाएँगी
पर स्थिरता इनकी कम न होगी
आता है जब आंधी तुफान
करते सब उनका सम्मान
जो रहता खड़ा अहंकार में अपने
मूल समेत उखड़ जाता वो जड़ से
सिख बहुत कुछ मिलती है इनसे
रहो स्थिर सदा सुख दुःख में
परोपकार का भाव हो मन में
सबको एक बराबर समझो
अहंकार के न साथ खड़े हो
सेवा करना परम धेय्य हो
पग जमीन पर सदा टीके हों।
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