शनिवार, 30 मई 2015

अभी देर है

लोग कहते है जोड़िया स्वर्ग में बना करती है 
और धरती पर हकीकत में तब्दील हुआ करती है 
मै भी खुद के लिए जोड़ी तलाश कर रहा हुँ अब 
पर पता चला है स्वर्ग में अभी हड़ताल मचा है 
पहले से शादी करने को कुछ अप्सराओ में तकरार बढ़ा है 
मेनका और रम्भा में अभी ये मामला अटका पड़ा है 
जाँच में मालूम हुआ है मेरा नंबर पहला है। 

शुक्रवार, 15 मई 2015

मेरा पड़ोसी

मेरा एक पड़ोसी ऐसा था 
मानो वह मुझसे जलता था 
औरो की तारीफें करता 
मुझको निचा खुब दिखाता 
फलना के लड़के को देखो 
है पढ़ता रहता दिनभर वो 
चिलना के बच्चे को देखो 
किया टॉप है उसने देखो 
अपने बच्चे की ना कहता 
पोल खुलेगी उससे देखो 
मै क्या हुँ करता कहा को जाता 
आँख उसी पे वो रखे रहता 
मुझको अक्सर वो ताने देता 
मै भी उससे खार था खाता 

पर इसका था एक और भी पहलु 
था मेरा पडोसी मेरा शुभचिंतक 
उसने भी मुझको राह दिखाया 
था उत्प्रेरक का किरदार निभाया 
चुनौतियों से परिचय करवाया 
पड़ोसी का उसने धर्म निभाया 
जो मुझको उसने था दर्पण दिखलाया 
करता हूँ अभिवादन मै उनका। 

रविवार, 10 मई 2015

घर से बाहर

आते जाते हम बस में अक्सर
खिड़की से बाहर तकते है 
खाने पीने के हर दुकानो को 
यूँ ही रिकॉर्ड है रखते हम 
कहा मिलेगा समोसा अच्छा 
कहा मिलेगा लिट्टी चोखा 
कहा मिलेगा रात का खाना 
कहा पर हमको है भुख मिटाना 
हर बात का लेखा रखते है हम 
जब घर से बाहर रहते है हम |

मौसम -ए -बरसात

मौसम -ए -बरसात में देखो 
सबलोग यहाँ पर भिग रहे है 
बीच पानी के खड़े हुए हम 
जाने कब से सुखे है।

पहचान

कभी अश्क बहते थे इन आँखों से 
जब जीवन को हमने जाना था 
अब सारा पानी सुख गया है 
जब हमने इसे पहचाना है। 

शनिवार, 9 मई 2015

भुख

उस रात ऑफिस में देर हो गयी थी , खाना मै घर के पास खाता था , वहाँ पहुचने में 45 मिनट बाकी थे और तब मेरा भूख से बुरा हाल हो रहा था। तब की ये रचना है 

भुख लगल है 
भुख लगल है 
पेट में चुहा 
कुद रहल है 
खाने को जी मचल रहल है 
भुख से पेट सिकुड़ रहल है 
खाने में है देर अभी 
मन बस में खाना ढूंढ रहल है ।

सपने

रंग बिरंगे खयालो से देखो
मन ये मेरा बहक रहा है 
मंजिल को पाने की चाह में देखो 
खुली आँखों से सपने देख रहा है 

काम

मेरी बेबसी का आलम तो देखो 
ये काम की मोहताज है 
जब काम था हमारे पास 
हमे आराम की तलाश थी 
आज आराम है हमारे पास 
फिर काम की तलाश है |

लत

निकला तो था मै आज बैंक जाने को घर से 
भुले से ऑफिस पहुंच गया 
दरबान ने कहा परिचय दो अपना 
उसे भी मैंने आई डी दिखा दिया 
फिर मुझे ये ध्यान में आया 
मुझको तो था बैंक में जाना 
जाने कैसी ये लत लग गयी है मुझको 
भूले से फिर ऑफिस पहुँच गया हूँ 
शायद अब आदत सी हो गयी है मुझको 
रोज सुबह ऑफिस जाने की 

ये दुनिया

ये दुनिया बड़ी ही जालिम है 
कुछ भी कर लो तुम मगर ये 
सपने बड़ी दिखती है 
कितने भी संतुष्ठ रहो पर 
ये नीचा तुम्हे दिखती है 
और भी ज्यादा पाने की ललक 
हममे सदा जागती है 
शान्त कभी रहने ना दे ये 
नये सपनो में हमे फसाती है 
ये दुनिया बड़ी ही जालिम है 
ये दुनिया बड़ी ही जालिम है |