वो मेदु वड़ा
वो टिकुली ढाबा
गोभी चिली संग
रोटी खाना
वो पनीर भर्ता
वो भेज मन्चुरी
एक रुपये में मिलता
वहा एक रोटी
सस्ता था आमलेट करी
मुझे महंगा लगता तड़का दाल
मिर्ची का क जब छोंका लगता
निखर जाता था खाने स्वाद
वो बाबु भाई की चाय दुकान
जहा अक्सर बिता शाम
सबका था वो मीटिंग सेंटर
हर बात पर होता था मंथन