इक वर्ष के समापन का
धन्यवाद इसके हर देन का
करो अभिनन्दन नववर्ष का
फैले प्रकाश हर्षोल्लास का
मंगलमय पावन हो वर्ष
बीते सबका जीवन सहर्ष
चित्त रहे सदा प्रसन्न
प्रभु करें दया अन्नन्त।
--सुमन्त शेखर
मेरे ख्यालों के कुछ रंग मेरे भावो की अभिव्यक्ति है। जीवन में घटित होने वाली घटनायें कभी कभी प्रेरणा स्रोत का काम कर जाती है । यही प्रेरणा शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है जिसे मैंने कविता के रूप सजाने का प्रयास किया है । आनंद लिजिये।
गुरुवार, 31 दिसंबर 2015
नव वर्ष की बधाई
रविवार, 22 नवंबर 2015
क्या होगा अब पढ़ने से।
आज के दौर में पढ़ना लिखना बेइमानी है
ज्यादा पढ़लिख के लोग यहाँ करते सबकी गुलामी है
कम पढ़ेलिखे को मिलती यहाँ देखो राजशाही है
परिणाम स्वरुप मेरे मन में नयी दुविधा उग आई है
क्यों पढ़े लिखे हम
नहीं करना हमको को गुलामी है
यार खेलो कूदो फिर
लेना सब से सलामी है
नवीं फेल यहाँ मंत्री है
डिग्री वाला बना संतरी है
कतराता है अब बच्चा बच्चा
कहता क्या होगा अब पढ़ने से|
ज्यादा पढ़लिख के लोग यहाँ करते सबकी गुलामी है
कम पढ़ेलिखे को मिलती यहाँ देखो राजशाही है
परिणाम स्वरुप मेरे मन में नयी दुविधा उग आई है
क्यों पढ़े लिखे हम
नहीं करना हमको को गुलामी है
यार खेलो कूदो फिर
लेना सब से सलामी है
नवीं फेल यहाँ मंत्री है
डिग्री वाला बना संतरी है
कतराता है अब बच्चा बच्चा
कहता क्या होगा अब पढ़ने से|
सोमवार, 9 नवंबर 2015
घर
सब को घर जाते देख
मेरे मन भी उठा उद्वेग
मन जाना चाह रहा था घर
पिताश्री का आया आदेश
रुक जाओ उधर
मत आओ इधर
हम स्वयं मिलने को आएंगे
सब लोगो को लाएंगे
वहा ज्यादा है जरुरत तुम्हारा
करो कर्तव्य का वहन तुम सारा
नियत समय पर तुम्हे आना होगा
तबतक कर्म निभाना होगा
-- सुमन्त शेखर
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015
पलकें
पलकें
जो खुली
हो
आँखे
दीदार ऐ
दुनिया
करती है
हर
शख्स के
चेहरे से
उसका
हाल ऐ
दर्द पढ़ती
है
पलकें
जो खुली
हो
महबुब
की आँखों
में झांकती
है
उसकी
आँखों में
मोहब्बत
से भरी
अपनी
तस्वीर
निहारती
है
पलकें
जो खुली
हो
आँखें
दुनिया
के हर
रंग से
खेलती है
कही
फैला हुआ
गम
तो
कही बटती
खुशिया
देखती है
पलकें
जो खुली
हो
हर
फुल कली
बड़ी प्यारी
लगती है
सभी
के होठो
पे फैली
मुस्कान
देखने
वाली होती
है
पलकें
जो बंद
हो
इंसान
को खुद
का एहसास
कराती है
हर
धड़कन और
हर साँस
की
एक
एक स्पन्दन
सुनाती
है
पलकें
बंद हो
तो
इंसान
को खुद
से पहचान
कराती है
अपने
भीतर छुपे
हुए तूफान
से
खुद
को परिचय
करवाती
है
पलकें
बंद हो
तो
सच
और झूठ
का वास्तविक
रूप दिखाती
है
हर
इंसान के
सोचने और
समझने की
नयी
ऊर्जा
दिलाती
है।
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015
लाल बहादुर शास्त्री
लाल तो बहुत से बहादुर हुए
पर कोई दूसरा लालबहादुर ना हुआ
लाहौर पर फतेह कर ले
कोई ऐसा दूसरा प्रधानमंत्री ना हुआ।
पर कोई दूसरा लालबहादुर ना हुआ
लाहौर पर फतेह कर ले
कोई ऐसा दूसरा प्रधानमंत्री ना हुआ।
जय जवान जय किसान का नारा
जब भारत की गलियों में गुंजा था
हरित क्रांति ला जिसने भारत को
खाद्यान में आत्मनिर्भर बनाया था
जब भारत की गलियों में गुंजा था
हरित क्रांति ला जिसने भारत को
खाद्यान में आत्मनिर्भर बनाया था
हर देशवासी को नाज है जिसपर
वो लाल बहादुर शास्त्री है
स्वावलंबी था जीवन में अपने
भारत को वो वीर सपुत।
वो लाल बहादुर शास्त्री है
स्वावलंबी था जीवन में अपने
भारत को वो वीर सपुत।
#lalbahdurshastri
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
बस यही सौगात मांगता हुँ
यूँ तो आज हमने उम्र के एक पड़ाव को पार किया
लोग कहते है बुढ़ापे की तरफ एक और कदम बढ़ा दिया
गौर से देखो तो नजर कुछ और आता है
कि इस दुनिया में संघर्ष का और एक साल निकाल लिया
ये तो बस आप सभी के आशीर्वाद और दुआओं का फल है
जो हमने ये मुकाम पा लिया
बरसता रहे आपका आशीर्वाद और दुआ हम पर अनवरत
बस यही सौगात मांगता हुँ
--सुमन्त शेखर
सोमवार, 21 सितंबर 2015
बादलों को भी शरमाना आ गया
मद्धम मद्धम सी रौशनी अब चाँद की
शर्म से लाल होने लगी है
बादलों का झुरमुट भी अब देखो उससे
जाने क्यों दूर जाने लगा है।
जाने क्यों दूर जाने लगा है।
लालिमा को ढकने वाला बादल आज
चाँद को कश्मकश में क्यों छोड़ गया
शायद लाल होते हुए चाँद के दीदार से
आज बादलो को भी शरमाना आ गया।
-- सुमन्त शेखर
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
सुखद संसार
देख रहा हुँ मैं बादलों का चमकना
दुर कही हो रहा है उनका बरसना
रात के इस अँधेरे में काले अंधेरे में
बादलों के मशालों का जलना
पलक झपकते ही फिर कहीं खो जाना
अंधेरे में युं ही चमकते रहना
हमको यह बतलाता है
स्थाई नहीं है कुछ भी यहाँ
फिर तु क्यों सभी से लड़ता है
अपने अहंकार की खातिर
क्यों मित्रों को खोता है
चलो छोड़े हम अपना स्वार्थ
मिलकर बनाएं हम सुखद संसार।
पौधे।
आज फिर कुछ पोधे लगाए है हमने
सींचा भी है जड़ो को उनकी
कुछ वर्षो में पोधे से पेड़ बनेंगे
उनमे फिर जब फल आएंगे
शाखें निचे झुक जाएँगी
पर स्थिरता इनकी कम न होगी
आता है जब आंधी तुफान
करते सब उनका सम्मान
जो रहता खड़ा अहंकार में अपने
मूल समेत उखड़ जाता वो जड़ से
सिख बहुत कुछ मिलती है इनसे
रहो स्थिर सदा सुख दुःख में
परोपकार का भाव हो मन में
सबको एक बराबर समझो
अहंकार के न साथ खड़े हो
सेवा करना परम धेय्य हो
पग जमीन पर सदा टीके हों।
सींचा भी है जड़ो को उनकी
कुछ वर्षो में पोधे से पेड़ बनेंगे
उनमे फिर जब फल आएंगे
शाखें निचे झुक जाएँगी
पर स्थिरता इनकी कम न होगी
आता है जब आंधी तुफान
करते सब उनका सम्मान
जो रहता खड़ा अहंकार में अपने
मूल समेत उखड़ जाता वो जड़ से
सिख बहुत कुछ मिलती है इनसे
रहो स्थिर सदा सुख दुःख में
परोपकार का भाव हो मन में
सबको एक बराबर समझो
अहंकार के न साथ खड़े हो
सेवा करना परम धेय्य हो
पग जमीन पर सदा टीके हों।
सोमवार, 29 जून 2015
मौसम बरसात का
ये मौसम बरसात का
गुजर जाये तो अच्छा है
ये आलम बेबसी का
बस! कट जाये तो अच्छा है
बरसता है बादल अब कुछ ऐसे
मानो कबकी प्यासी जमीन हो जैसे
कहीं पानी को तरसती है जिंदगी
कहीं पानी से जूझती है जिंदगी
बस अब ये बरसात ठहर जाये तो अच्छा
हर प्यासे को पानी मिल जाये तो अच्छा
कही बाढ़ ना आये तो अच्छा
जरुरत भर बरस जाये तो अच्छा
ये मौसम बरसात का
गुजर जाये तो अच्छा है
ये आलम बेबसी का
बस! कट जाये तो अच्छा है |
शनिवार, 30 मई 2015
अभी देर है
लोग कहते है जोड़िया स्वर्ग में बना करती है
और धरती पर हकीकत में तब्दील हुआ करती है
मै भी खुद के लिए जोड़ी तलाश कर रहा हुँ अब
पर पता चला है स्वर्ग में अभी हड़ताल मचा है
पहले से शादी करने को कुछ अप्सराओ में तकरार बढ़ा है
मेनका और रम्भा में अभी ये मामला अटका पड़ा है
जाँच में मालूम हुआ है मेरा नंबर पहला है।
शुक्रवार, 15 मई 2015
मेरा पड़ोसी
मेरा एक पड़ोसी ऐसा था
मानो वह मुझसे जलता था
औरो की तारीफें करता
मुझको निचा खुब दिखाता
फलना के लड़के को देखो
है पढ़ता रहता दिनभर वो
चिलना के बच्चे को देखो
किया टॉप है उसने देखो
अपने बच्चे की ना कहता
पोल खुलेगी उससे देखो
मै क्या हुँ करता कहा को जाता
आँख उसी पे वो रखे रहता
मुझको अक्सर वो ताने देता
मै भी उससे खार था खाता
पर इसका था एक और भी पहलु
था मेरा पडोसी मेरा शुभचिंतक
उसने भी मुझको राह दिखाया
था उत्प्रेरक का किरदार निभाया
चुनौतियों से परिचय करवाया
पड़ोसी का उसने धर्म निभाया
जो मुझको उसने था दर्पण दिखलाया
करता हूँ अभिवादन मै उनका।
रविवार, 10 मई 2015
घर से बाहर
आते जाते हम बस में अक्सर
खिड़की से बाहर तकते है
खिड़की से बाहर तकते है
खाने पीने के हर दुकानो को
यूँ ही रिकॉर्ड है रखते हम
कहा मिलेगा समोसा अच्छा
कहा मिलेगा लिट्टी चोखा
कहा मिलेगा रात का खाना
कहा पर हमको है भुख मिटाना
हर बात का लेखा रखते है हम
जब घर से बाहर रहते है हम |
मौसम -ए -बरसात
मौसम -ए -बरसात में देखो
सबलोग यहाँ पर भिग रहे है
बीच पानी के खड़े हुए हम
जाने कब से सुखे है।
पहचान
कभी अश्क बहते थे इन आँखों से
जब जीवन को हमने जाना था
अब सारा पानी सुख गया है
जब हमने इसे पहचाना है।
शनिवार, 9 मई 2015
भुख
उस रात ऑफिस में देर हो गयी थी , खाना मै घर के पास खाता था , वहाँ पहुचने में 45 मिनट बाकी थे और तब मेरा भूख से बुरा हाल हो रहा था। तब की ये रचना है
भुख लगल है
भुख लगल है
पेट में चुहा
कुद रहल है
खाने को जी मचल रहल है
भुख से पेट सिकुड़ रहल है
खाने में है देर अभी
मन बस में खाना ढूंढ रहल है ।
सपने
रंग बिरंगे खयालो से देखो
मन ये मेरा बहक रहा है
मंजिल को पाने की चाह में देखो
खुली आँखों से सपने देख रहा है
काम
मेरी बेबसी का आलम तो देखो
ये काम की मोहताज है
जब काम था हमारे पास
हमे आराम की तलाश थी
आज आराम है हमारे पास
फिर काम की तलाश है |
लत
निकला तो था मै आज बैंक जाने को घर से
भुले से ऑफिस पहुंच गया
दरबान ने कहा परिचय दो अपना
उसे भी मैंने आई डी दिखा दिया
फिर मुझे ये ध्यान में आया
मुझको तो था बैंक में जाना
जाने कैसी ये लत लग गयी है मुझको
भूले से फिर ऑफिस पहुँच गया हूँ
शायद अब आदत सी हो गयी है मुझको
रोज सुबह ऑफिस जाने की
ये दुनिया
ये दुनिया बड़ी ही जालिम है
कुछ भी कर लो तुम मगर ये
सपने बड़ी दिखती है
कितने भी संतुष्ठ रहो पर
ये नीचा तुम्हे दिखती है
और भी ज्यादा पाने की ललक
हममे सदा जागती है
शान्त कभी रहने ना दे ये
नये सपनो में हमे फसाती है
ये दुनिया बड़ी ही जालिम है
ये दुनिया बड़ी ही जालिम है |
रविवार, 22 मार्च 2015
एक याद
वो मेदु वड़ा
वो टिकुली ढाबा
गोभी चिली संग
रोटी खाना
वो पनीर भर्ता
वो भेज मन्चुरी
एक रुपये में मिलता
वहा एक रोटी
सस्ता था आमलेट करी
मुझे महंगा लगता तड़का दाल
मिर्ची का क जब छोंका लगता
निखर जाता था खाने स्वाद
वो बाबु भाई की चाय दुकान
जहा अक्सर बिता शाम
सबका था वो मीटिंग सेंटर
हर बात पर होता था मंथन
शुक्रवार, 20 मार्च 2015
मेहनत रंग लाई
मेरे एक मित्र ने
अपनी पत्नी को घर जाने के लिए
भरी दोपहरी में लाइन लगकर
रेल का टिकट बुक कराया
जाने क्या हुआ उनकी पत्नी को
घर ना जाने की इच्छा बताया
लगा जैसे कोई पुराना खत
आज उनके हाथ है आया
मित्र हमारा
परेशान बेचारा
टिकट मिला था
वेटिंग वाला
आनन फानन में
उस ने सारा जोर लगाया
रेलवे से है भिड़ा बेचारा
तत्काल का टिकट है निकला
जैसे तैसे करके उसने
पत्नी को है अभी मनाया
जाएगी अब पत्नी घर को
बड़ा सुकुन है उसने पाया।
शुक्रवार, 13 मार्च 2015
घर को मंदिर बना दिया
आजकल के चोरों का स्तर
देखो कितना गिर गया
पहले मंदिर से गायब करते थे जुते
आज हमारे घर को मंदिर बना दिया
गुरुवार, 12 मार्च 2015
हसीन याद
सोचा था मैंने
चार चाँद लगाउँगा
करियर में अपने
चाँद तो मिला
मेरे हाथ भी लगा
पर जुड़ने ना दिया
उसे करियर में मेरे
बस उसके निशां रह गए
और कुछ हसीन याद
कि कभी चाँद लगा था मेरे हाथ
चुभता है आज मुझे वो हसीन याद
गुरुवार, 5 मार्च 2015
जोगीरा सा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा ....
बैंगलोर में उड़ल धुल
घर में है ढिबरी गुल
कैसे सब खेलम होली
पानी के है बहुत कमी
जोगीरा सा रा रा रा ....
दिल्ली में बरसे बादल
ओढ़ले है सबलोग चादर
बाहरे है ठण्डा बढ़ल
कइसे सब होली खेलम
जोगीरा सा रा रा रा ....
मांझी के नाव डूबल
नितीश फिर मंत्री बनल
लालु संग गले मिलल
संगे दुनो होली खेलल
जोगीरा सा रा रा रा ....
मोदीजी के सपना टूटल
दिल्ली के आप लूटल
केजरी जी मंत्री बनल
भाजपा के वाट लगल
जोगीरा सा रा रा रा ....
अटिक में होली मनल
रेंगन सब रंग में भीगल
बड़को ना एक्को बचल
जम के है होली खेलल
जोगीरा सा रा रा रा ....
बुधवार, 4 मार्च 2015
रविवार, 8 फ़रवरी 2015
मेरी दिनचर्या
सुबह होती
आँखे मिचे
तज बिस्तर कोजल्दी मैं भागूं
आठ से पांच है समय ऑफिस का
घडी का कांटा आठ बताता
अक्सर यूं ही देर देर मै करता
सारी गलती बस पे मढ़ता
दस बजे को ऑफिस आता
पहले तो है मीटिंग होता
फिर चाय कॉफ़ी का दौर है चलता
आकर के फिर रिपोर्ट बनाना
थोड़ा बहुत कोडिंग भी करना
सबके साथ फिर लंच में जाना
वापस आके फिर कोडिंग करना
फिर नींद आने पर चाय है पीना
संग थोड़ा सा गप्पें करना
पांच बजे को ऑफिस छोड़ना
सात बजे तक घर को आना
फिर थोड़ा सा दौड़ लगाना
घर में आकर खाना खाना
फिर फेसबुक पर चैटिंग करना
देर रात में फिर सो जाना
यही रहती दिनचर्या मेरी
हर दिन ये ना एक सा रहता
थोड़ा सा परिवर्तन रहता
करता हुँ प्रयास यही
सुबह जागूँ मैं थोड़ा जल्दी
बस करता हुँ प्रयास यही
आँखे मिचे
तज बिस्तर कोजल्दी मैं भागूं
आठ से पांच है समय ऑफिस का
घडी का कांटा आठ बताता
अक्सर यूं ही देर देर मै करता
सारी गलती बस पे मढ़ता
दस बजे को ऑफिस आता
पहले तो है मीटिंग होता
फिर चाय कॉफ़ी का दौर है चलता
आकर के फिर रिपोर्ट बनाना
थोड़ा बहुत कोडिंग भी करना
सबके साथ फिर लंच में जाना
वापस आके फिर कोडिंग करना
फिर नींद आने पर चाय है पीना
संग थोड़ा सा गप्पें करना
पांच बजे को ऑफिस छोड़ना
सात बजे तक घर को आना
फिर थोड़ा सा दौड़ लगाना
घर में आकर खाना खाना
फिर फेसबुक पर चैटिंग करना
देर रात में फिर सो जाना
यही रहती दिनचर्या मेरी
हर दिन ये ना एक सा रहता
थोड़ा सा परिवर्तन रहता
करता हुँ प्रयास यही
सुबह जागूँ मैं थोड़ा जल्दी
बस करता हुँ प्रयास यही
सोमवार, 2 फ़रवरी 2015
इंटरनेट का अभाव
आज खुद को बेबस महसूस करता हूँ मैं
जब भी इंटरनेट से जुदा हो जाता हूँ मैं
कहाँ ईमेल और फेसबुक पर रहता था व्यस्त
आज अचानक से हो गया हूँ त्रस्त
बेकार सा पड़ा हुआ हूँ मै आज घर में
जी नहीं लगता मेरा आज किसी काम में
कोसता हूँ जी भर बीएसएनएल को आज मैं
क्यों करते है देर लोग सरकारी काम में
घर में है टीवी इंटरनेट से चलने वाला
इंटरनेट के अभाव में बन गया ये केबल वाला
बारबार देखता हूँ मैं लैपटॉप
शायद चलने लगा हो इंटरनेट मेरा
शुक्रवार, 30 जनवरी 2015
हिन्दी भाषा
मन में मेरे उठा ये सवाल है
हिन्दी भाषा का क्या आधार है
क्यों हो रहा शब्दों का विस्मरण
कैसे करूं मै इसका मनन
लिखने को हिन्दी में जब मै
कर कलम ले कागज में लिखता
हिन्दी के शब्दों को छोड़ो
ए बी सी डी ही छप जाता
भुल ना जाऊं मै अब हिन्दी
मुझको इसका डर है सताता
करता हुँ धन्यवाद गूगल का
जिसने हिन्दी का शब्द बचाया
मंगलवार, 13 जनवरी 2015
शेर vs शेर
उस शेर और इस शेर में बस इतना सा ही है फर्क
एक जंगलों में मिलता है और एक रहता हमारे संग
वो करता सबको खौफजदा ये लोगो को है बहुत पसंद
दुर भागते है सब उससे, ये दिल में जगह बनाता है
आप एक शेर से डरते हो, मैं शेरो के संग रहता हुँ
आप एक शेर से डरते हो, मैं शेरो के संग रहता हुँ
बुधवार, 7 जनवरी 2015
सवाल ?
तलाश रहा हुँ मैं खुद को
जाने क्या मेरी पहचान है
कौन हुँ मैं क्या ध्येय है मेरा
सबसे बड़ा सवाल है ?
जीवन के अंधेर डगर पर
किस मंजिल तक मुझे जाना है
क्या खोना है,क्या पाना है
कब तक धक्के खाना है ?
उलझी है ये डोर जगत की
कैसे इसे सुलझाना है
सोच रहा हुँ मै मुसाफिर
कितनी दुर अभी जाना है ?
शुक्रवार, 2 जनवरी 2015
खाने का स्वाद
बाजार से लौटते वक्त
लोगो ने पुछ दिया मुझसे आज
सुमन्त शेखर !!!
क्या लाये हो आज
क्या खाने में है कुछ खास
जवाब में यही मै कह पाया
लाया हूँ खाने का स्वाद
नमक मिर्च संग थोरा प्याज
मीठे का भी कुछ है भाग
चलो मिलकर भोग लगाये आज।
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