रविवार, 25 मई 2014

मेरे मित्र

कई मित्र मेरे 
जो पढ़ते थे कविता औरो की 
आज के दौर में 
रचनाकार है कविताओ के 

भटकते थे जो दर बदर 
एक नौकरी की तलाश में 
अपनी संस्था में 
लोगो को नौकरियां बाँट रहे है 

संघर्ष रत थे 
जो अध्ययन के छेत्र में 
सफल है अधयापन के छेत्र में 
वो चेहरे 

कभी जो सोचते थे 
निज लाभ का 
आज सबका भला 
सोच रहे है 

ख़्वाब जो देखे थे 
हमसब ने मिलकर 
औरो को उसके आगे का 
ख़्वाब दिखा रहे है 

शनिवार, 24 मई 2014

अकेलापन

खलता है अक्सर 
मुझको मेरा अकेलापन 
तरसता हु हरदम 
सबसे गप्पे लड़ाने को 
ख़ामोशी कहती है मुझको 
नज्मे गुनगुनाने को 
लिखता हुँ अब मै 
केवल समय बिताने को 

सोमवार, 12 मई 2014

मै और हम

मैं और तुम 
गर 
हम हो जाते
हर मंजिल
हासिल कर पाते 

मै और हम में 
मै अकेला रहता हु 
हम साथ साथ हो जाते है 
फिर हर बाधा 
हर मुश्किल से 
हम एक साथ टकराते है 
कुछ तुम काटो 
कुछ हम काटे 
मंजिल साथ में पाते है 

मै एक अकेला 
जब थक हार कर 
निराश होने को होता 
तुम आगे आकर के तब 
मै की मुश्किल करते हल 
मै एक राह में उलझा रहता
तुम भी एक नया राह दिखाते 
हम एक और एक ग्यारह होते 
हर मुश्किल से पार हम पाते 

इन्तेजार

कब से खड़े है हम राह में तेरे 
ए 'बस' अब आ और मुझे ले चल 
इन्तेजार की घड़ियाँ अब लम्बी हो चली 
खत्म होना तो जैसे भूल ही गयी है 
सब आते है सब जाते है 
पर तुम ना आते हो ना जाते हो 
क्यूँ तुम अक्सर खफा रहते हो 
जो मेरे आने पर नदारद रहते हो