रविवार, 20 अप्रैल 2014

घर के जैसा स्वाद

पूरी चावल 
रसम सांभर 
साथ में दही, पापड़ 
चटनी और अचार 
खाते है हम अक्सर 
दोपहर के भोजन में आज 
कभी कभी आलू पराठा 
कभी तंदूरी रोटी चार 
खाने के बाद हरदिन 
हम मठ्ठा (मजगे) पीते यार 
पिज़्ज़ा भी है हमसब खाते 
बिरयानी का भोग लगाते 
अलग अलग रेस्तरा में जाते 
नया नया ब्यंजन हम खाते 
ज्वार की रोटी 
गाजर का हलवा 
मलाई कोफ्ता 
कुलचा और नान 
हमसब को भाते यार 
फिरभी नहीं है मिल पाता 
घर के जैसा स्वाद
फुलके संग सब्जी का 
अलग ही होता है अंदाज  
तलाश करते हम जिसका 
बेसब्री के साथ 
विरले ही मिल पाता है 
घर के जैसा स्वाद। 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

शायद मुझे नींद आ रही थी

दोपहर के बाद का समय था 
खा कर लौटे कुछ देर हो चला था 
आँखे भारी सी लग रही थी 
मन को आलस घेर रहा था 
देह कुछ करने को तैयार ना था 
बार बार जम्हाई आ रही थी 
कभी गर्दन को दाये झटकता 
तो कभी बाये झटकता 
कभी खुद को चिकोटी काटता 
कभी अंगुलिया चटकाता 
कभी पानी की दो घुंट पीकर 
दो चार कदम यूं ही चलता
कंप्यूटर पर कुछ लिख रहा था मै 
अंगुलिया स्वतः रुक सी गयी थी 
जाने क्या हो रहा था मुझे 
शायद मुझे नींद आ रही थी |

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मूर्ख दिवस

मूर्ख दिवस 
उत्कर्ष दिवस 
अप्रिल मास का 
प्रथम दिवस 

खुद को कहते 
मूर्ख आज लोग 
अपने क्षेत्र के 
विद्वान लोग 

ज्ञान का सागर अगाध है 
सबके पास उसकी प्यास है 
अकेला पारंगत कोई नहीं 
बुँदे सबके पास दो चार है 

सबमे कुछ गुण खास है 
उसमे वो विद्वान है 
उन गुणो को छोड़ शेष गुणो में 
हर कोई मूरखराज है 

जहा जहा ये शून्य है आता 
हर इंसान है मूर्ख कहाता 
इस शून्य से जो आगे बढ़ता 
उसका ही उत्कर्ष है होता