मंगलवार, 1 अगस्त 2023

कौन हूँ मैं?

तलाश है मुझे खुद की,
खुद से ये पूछता हूँ मैं,
कौन हूँ मैं?
ढूंढता अपने आस्तित्व को,
आईने से पूछता,
कौन हूँ मैं?
आंखों में स्वप्न लिए,
भटकता मैं दर दर,
कौन हूँ मैं?
हर मोड़ पर ख्वाहिशें है मिटती,
दिल के समंदर में लहरे है उठती,
कौन हूँ मैं?
गौण हूँ मैं,
तसल्ली का तलबगार,
गुमनाम हूँ मैं।
--सुमन्त शेखर।

सोमवार, 3 जनवरी 2022

नया सफर

वक्त का कारवां बढ़ चला,
मुसाफिरों को मंजिल पर ले जाने को,
मैं भी था मंजिल का मुसाफिर,
सवार हो गया मैं मंजिल पर जाने को।

नम थी पलकें ना जाने क्यों,
कुछ साथी थे शायद छूट जाने को,
मिला वो अपनापन प्यार मुझे,
सिखाता रहा जो नया आजमाने को।

वो कहते क्यूं घबराते हो नई चीजों से,
पीछे खड़ा हूँ मैं सदा गलतियां सुधारने को,
तुम इक कोशिश तो करो,
जिंदगी तैयार है तुम्हे सब सिखाने को।

भले ही आपस मे मिले ना हो कई,
सब जिद्दी है समस्याओं को सुलझाने को,
सब एक से बढकर एक धुरंदर,
जीते हैं हमेशा जीत के आने को।

साथ हमारा बस यहीं तक,
अब नया मोड़ है आने को,
संभव है आगे चल कर के फिर,
कोई मोड़ बनी हो मिल जाने को।

चल पड़ा हूँ मैं भी यारो,
नए दोस्त बनाने को,
नया सफर है नई डगर है,
तैयार कलम है नई कहानी लिखने को।
--सुमन्त शेखर

शनिवार, 26 दिसंबर 2020

हुनरबाज

हुनरबाजों का हमने हुनर है देखा,
भवंर से किश्ती को निकलते देखा,
खोई उम्मीद को जागते देखा,
अमावस में चांद निकलते देखा।

हाथों में करीने की सफाई देखी,
टूटे मशीनों की जुड़ाई देखी,
संभावनाओं की अनंत जहां देखी,
हौसलों की मुकम्मल उड़ान देखी।

--सुमन्त शेखर।

शनिवार, 28 नवंबर 2020

।।निज व्यथा कथा।।

उलझा हुआ हूँ खुद में आज मै,
कैसे बाहर आऊं,
जीवन की यह अबूझ पहेली,
कैसे मै सुलझाऊँ।
डेडलाइन की विकट समस्या,
स्प्रिंट में बतलाऊँ,
माइल स्टोन के चक्कर मे,
मैं खुद ही फंस जाऊं।
अरे छुट्टी फुट्टी भूल जा भईया,
अब काहे आफिस जाऊं,
अब घर से ही है काम जे करना,
छुट्टी ना ले पाऊँ।
अब आया है समय रे भईया,
काम जो कुछ कर जाऊं,
घर परिवार मित्र और खुद को,
थोड़ा समय दे पाऊँ।
-सुमन्त शेखर

रविवार, 9 अगस्त 2020

प्रयास

करत करत प्रयास में,
हो गया सुबह का शाम।
जस का तस प्रॉब्लम रहा,
मिला न कोई समाधान।।

।।सुमन्त शेखर।।

बुधवार, 5 अगस्त 2020

राम

मानवता, सदभाव, दया का,
कलयुग में फैले धर्म पताका,
ईर्ष्या द्वेष घृणा लोभ का,
मनुज करे अब त्याग अहम का।

अरे राम राज की तुम करो कल्पना,
सभी मित्र है ना कोई शत्रु अपना,
क्यू आपस मे बैर है रखना,
प्रेम से सबलोग मिलजुल रहना।

समभाव से देखो ना कंग्रेस भाजपा,
अरे छोड़ दो झगड़ा राम है सबका।
-सुमन्त शेखर।।

सोमवार, 6 जुलाई 2020

नेता

यूं रोज रोज हमे भटकाया ना करो,
बात मुद्दे की हो तो करो,
रक्षा के भेद टोहते हो हमेशा,
सोचता हूँ तुम्हारा काफिला है कैसा,
क्यूं उम्मीदों के दीपक तुम बुझाते हो,
अपनी फजीहत बार बार करवाते हो,
काफिले के सितारों को सूरज बनने नही देते,
निज स्वार्थ मे डूबे खुद को उठने भी नही देते,
सिंह सी गर्जना तुम कर नही सकते,
और किसी के गर्जन को तुम सुन नही सकते,
जानते हैं हम प्रधानमंत्री बनना है तुम्हे,
प्रधानमंत्री की औकाद जाहिर कर नही सकते।
--सुमन्त शेखर